जारी रहेंगे भाईचारा सम्मेलन और रैलियां: मायावती |
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Monday, 15 July 2013 09:17 |
![]() बसपा प्रमुख मायावती ने रविवार को मीडिया से इस पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि बसपा का मानना है कि देश का सामाजिक ढांचा जातीय आधार पर केंद्रीत है। इसका निर्माण यहां गैर बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था के आधार पर हुआ है। इस गैर बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को जाति के आधार पर गुलाम और लाचार बनाकर रखा गया है। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए इसे आधार मानकर इन वर्गों के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों व राजनीति में आरक्षण की व्यवस्था संविधान में की है। उन्होंने कहा कि इसी वजह से बसपा गैर बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था को बदलकर समतामूलक व्यवस्था बनाना चाहती है। उन्होंने कहा कि इस गैर बराबरी वाले समाज को बदलने की पहल अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों को खुद ही करनी होगी। इसकी लड़ाई बसपा ने भी लड़ी है। बसपा ने यह पहल राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि देश और सर्वसमाज के हित में की है। इसलिए बसपा पहले सामाजिक है उन्होंने कहा कि बसपा यह पहल जातीय आधार पर सर्वसमाज को बांटने के लिए नहीं बल्कि सर्वसमाज में सामाजिक सौहार्द और आपसी भाईचारा पैदा करने के लिए कर रही है। जिससे केंद्र और राज्यों में बसपा की सरकार बनने पर सर्वसमाज को जिंदगी के हर पहलू में आगे बढ़ने का पूरा-पूरा मौका मिल सके। उन्होंने कहा कि बसपा को सामाजिक परिवर्तन और सर्वसमाज में भाईचारा पैदा करने और बनाने का अभियान पूरे देश में तब तक जारी रहेगा जब तक जातीय आधार बाकी पेज 8 पर उङ्मल्ल३्र४ी ३ङ्म स्रँी ८ पर बनी हुई यह गैर बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह बदल नहीं जाती है। उन्होंने कहा कि बसपा के इस अभियान से यदि कुछ लोगों को एतराज है तो पार्टी उसमें बदलाव करेगी। उन्होंने कहा कि माननीय अदालत के आदेश को देखकर अब हमारी पार्टी पूरे देश में सर्वसमाज में सामाजिक भाईचारा और सामाजिक सौहार्द पैदा करने के लिए सर्वसमाज भाईचारे के नाम पर सम्मेलन और रैलियां करेगी। बसपा अपने इस सामाजिक परिवर्तन के अभियान को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगी, जिससे सर्वसमाज के लोग सही मायने में यहां भारतीय संविधान की मंशा के अनुरूप चलकर आगे बढ़ सकें। उन्होंने कहा कि बसपा के इस कदम की लोगों को प्रशंसा करनी चाहिए, इसकी आलोचना नहीं। उन्होंने कहा कि इसे हमारे विरोधियों को अपने राजनीतिक नफे-नुकसान के नजरिए से नहीं बल्कि इस कदम को सामाजिक बदलाव के नजरिए से देखना चाहिए। आपके विचार |