सफेदी के दाग |
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Thursday, 28 August 2014 11:17 |
जनसत्ता 28 अगस्त, 2014 : जल प्रदूषण पर आयोजित एक संगोष्ठी में उठाए गए इस सवाल पर कृपया आप भी गौर फरमाइए: कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अपनी कमीज को उसकी कमीज से अधिक सफेद करने के चक्कर में अपने घर, कुओं, पोखरों, तालाबों और नदियों के जल को प्रदूषित करते चले गए और अब इन सभी स्रोतों का जल इतना गंदला हो चुका है कि जितनी भी कोशिश करते हैं, कमीज पहले जैसी सफेद होती ही नहीं? और हां, यह कमीज तो महज उन सभी क्षेत्रों की प्रतीक है जिनमें हम एक-दूसरे से ‘अधिक सफेद दिखने की प्रतिस्पर्द्धा’ के मकड़जाल में फंस कर अपनी धरती को प्रदूषित करते रहते हैं। सुभाष लखेड़ा, गुटेनबर्ग, न्यूजर्सी ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta आपके विचार |