क्या हिन्दू और क्या मुस्लिम: सबके लिए एक बड़ी राहत केंद्र में बदल गई 'हैदरपुरा मस्जिद' |
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Friday, 12 September 2014 14:16 |
श्रीनगर। शाम का वक्त है , मौलवी अजान दे रहे हैं और इसीबीच नमाज अदा करने के लिए लोग आने लगे।इसके ठीक बाद मस्जिद परिसर में तंबू के सामने कुछ लोग भोजन के लिए जमा हो गए। यह हैदरपुरा इलाके की जामा मस्जिद है जो कश्मीर घाटी में त्रासद बाढ़ से पीड़ितों के लिए एक बड़ी राहत केंद्र में बदल गई है। महिला और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों ने यहां शरण ले रखी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आपदा के इस पल में यह मस्जिद सांप्रदायिक सौहार्द का एक प्रतीक बन गयी है। काम के लिए राज्य के बाहर से आए कुछ हिंदुओं ने भी यहां शरण ले रखी है। यह शिविर अभी बाढ़ से प्रभावित नहीं हुआ है। घाटी के विभिन्न हिस्से से आने वालों ने दुख और दर्द की आपबीती ‘पीटीआई’ को सुनाई। उन लोगों ने बताया कि किस तरह रिहायशी इलाके में पानी आने लगा, कैसे जलस्तर बढ़ता गया और कैसे कुछ खुद और कुछ सेना तथा अन्य स्थानीय लोगों की मदद से जान बचा पाए । सरकारी कर्मचारी 58 वर्षीय बसीर अहमद अखून ने कहा, ‘‘जब पानी तेजी से बढ़ने लगा तो मैं परिवार के अन्य तीन सदस्यों के साथ रविवार की शाम (31 अगस्त) घर से निकला। मैंने एक नाव की व्यवस्था की और सबसे पहले अपनी बेटी को मस्जिद भेजा। इसके बाद बाकी लोगों को भेजा। उसके बाद से हम मस्जिद में रह रहे हैं।’’ 60 वर्षीय खालिदा अख्तर ने अख्तर ने कहा, ‘‘हमने पहले एक अस्पताल में शरण ली। लेकिन, अस्पताल का भवन भी खतरे में था और पुलिस को मदद के लिए कॉल किया गया। आधी रात के वक्त सेना आयी और हमें बचाया। मैं उन सबकी एहसानमंद हूं।’’ बेघर लोगों को आश्रय देने के लिए मस्जिद के संचालकों का भी अख्तर ने शुक्रिया अदा किया। उनके बेटे मोहम्मद हारून ने कहा कि अस्पताल में 2000 लोग थे जिन्हें उस रात सेना ने बचाया। उन्होंने कहा, ‘‘पुलिस को कॉल किया गया लेकिन, सेना हमें बचाने के लिए आयी। हम अपनी नई जिंदगी के लिए उनके शुक्रगुजार है।’’ हैदरपुरा जामा मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष हाजी गुलाम नबी डार ने कहा कि मस्जिद में हर दिन करीब 2400 भोजन करते हैं। उन्होंने बताया कि बारामूला, कुपवाड़ा और सोपोर जैसी जगहों पर प्रभावित लोग भी आश्रय के लिए आये हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमने शुक्रवार की रात शिविर लगाने का फैसला किया जब हमने देखा कि बाढ़ का पानी बढता जा रहा है।’’ डार ने कहा कि शिविर चलाने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है और राहत सामग्री आम लोगों की तरफ से आ रही है। (भाषा) आपके विचार |