जनसत्ता 19 सितंबर, 2014: देश के विभिन्न राज्यों में हाल में हुए उपचुनावों में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। इससे पहले उत्तराखंड, बिहार, कर्नाटक और मध्यप्रदेश के उपचुनावों में भी भाजपा को करारी
जनसत्ता 19 सितंबर, 2014: भारत जैसे विशाल और विकराल समस्याओं वाले देश में मोदी सरकार से सौ दिनों में चमत्कार की अपेक्षा तो नहीं ही की जा सकती, लेकिन इसके कुछ निर्णयों की बात करें तो भारत के पूर्व मुख्य
जनसत्ता 18 सितंबर, 2014: सांप्रदायिक ताकतें छोटी-छोटी घटनाओं को हिंसा और सांप्रदायिकता का रंग देने से बाज नहीं आ रही हैं। इस प्रकार की घटनाओं को सांप्रदायिक रंग देकर उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जैसे पारंपरिक रूप से
जनसत्ता 18 सितंबर, 2014: शिक्षा का अधिकार कानून अपने लक्ष्य से काफी दूर दिखता है, तो सबसे बड़ा कारण सरकारी स्कूलों की तरफ अपेक्षित ध्यान न दिया जाना है। अव्वल तो शिक्षा के मद में जरूरत के मुताबिक धन आबंटित न
जनसत्ता 17 सितंबर, 2014: के विक्रम राव का लेख ‘आपदा के दौर में कहां बिला गए ‘आजादी’ के झंडाबरदार’ (12 सितंबर) कश्मीर आपदा के बारे में पूरे कॉरपोरेट मीडिया द्वारा परोसे जा रहे अंधराष्ट्रवादी प्रचार से किसी भी तरह अलग नहीं
जनसत्ता 17 सितंबर, 2014: अशोक वाजपेयी ने अपने स्तंभ ‘कभी-कभार’ (14 सितंबर) में हिंदी के संस्कृत से दूर होने की बात कही है। हमारा पूछना यह है कि हिंदी का संस्कृत से कब बहनापा रहा है? जिस संस्कृत में उन्हें ‘अदम्य निर्भयता,
जनसत्ता 17 सितंबर, 2014: लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा अपनी पहचान खोकर मोदी और शाह की निजी पार्टी में बदल चुकी है। अफसोस है कि भाजपा के लोग मनमोहन सिंह बन कर रह गए। अटल, आडवाणी और जोशी को महत्त्वपूर्ण समिति से निकाले जाने
जनसत्ता 16 सितंबर, 2014: जम्मू-कश्मीर में जल-प्लावन की त्रासदी ने वहां लाखों लोगों को बेघर कर दिया है। एक सूचना के मुताबिक तीन सौ से अधिक लोग अब तक मौत के शिकार हुए हैं। अनेक लापता हैं या फिर बाहरी संसार से अलग-थलग पड़े हुए
जनसत्ता 16 सितंबर, 2014: सुभाष शर्मा ने ‘गूंगा: आस्था और आजीविका के दायरे’ (जनसत्ता रविवारी, 31 अगस्त) में प्रदूषण के बढ़ते खतरों का जो व्यापक चित्रण किया है वह आंखें खोलने वाला है बशर्ते विकास के मारे ‘आंख के अंधे नाम
जनसत्ता 15 सितंबर, 2014: अभी यह नहीं कहा जा सकता कि शिक्षा के क्रांतिकारी बदलाव का दौर शुरू हो चुका है। तमाम क्षेत्र ऐसे हैं, जहां वाकई क्रांति का सूत्रपात किया जाना आवश्यक है। देश में उदारीकरण का सर्वाधिक फायदा
जनसत्ता 15 सितंबर, 2014: मौजूदा विकास नीति पूंजीवादी व्यवस्था को मजबूत कर रही है। धरती को खोखला करके हो रही प्राकृतिक संसाधनों की लूट को विकास बता कर जन-साधारण को छला जा रहा है। विकास के नाम पर पर्यावरण को भारी नुकसान