अलका मनराल
जनसत्ता 20 मई, 2014 : सपने, सपनों जितना ही प्यारा शब्द! जिसे हर कोई देखता है, पर ये पूरे कम ही
विकेश कुमार बडोला
जनसत्ता 19 मई, 2014 : मैंने अपनी व्यक्तिगत दृष्टि
डॉली बंसीवार
जनसत्ता 17 मई, 2014 : जयंती रोजाना थोड़ी-सी सब्जियां खरीद कर लाती है और सुबह से शाम तक दादर
मोनिका शर्मा
जनसत्ता 16 मई, 2014 : शब्द जिसके मुख से निकलते होते हैं, उस व्यक्ति विशेष के लिए हमारे मन में
पृथ्वी
जनसत्ता 15 मई, 2014 : ‘तुम इन बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहो/ तुम इन नजारों के अंधे तमाशबीन नहीं।’ (दुष्यंत
रोहित कुमार चौधरी
जनसत्ता 14 मई, 2014 : विज्ञापन का एक छोटा-सा अंश है- ‘छतरी मैन...
अभिषेक रंजन सिंह
जनसत्ता 13 मई, 2014 : असम के कोकराझार, बक्सा और चिरांग जिले में पिछले दिनों हुई
भंवर लाल मीणा
जनसत्ता 12 मई, 2014 : मैं गांव से बस द्वारा नजदीक के बाजार में
प्रीति तिवारी
जनसत्ता 10 मई, 2014 : मुझे नहीं पता कि यह कोई गंभीर बात
भव्य भारद्वाज
जनसत्ता 9 मई, 2014 : लोकतंत्र में सभी को अपने अनुसार
रिम्मी
जनसत्ता 8 मई, 2014 : हालांकि दुनिया के ज्यादातर हिस्सों के सामाजिक ढांचे में बराबरी के पैमाने पर