देवेंद्र सिंह सिसौदिया जनसत्ता 19 सितंबर, 2014: मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) में हुए घोटाले में अभी तक लगभग साढ़े
|
|
नवीन नेगी जनसत्ता 18 सितंबर, 2014: एक दिन में मेरी मित्र सूची में पंद्रह नए लोग शामिल हुए। कुछ मेरे शहर से थे, कुछ स्कूल या कॉलेज से। दो-तीन से तो मेरा दूर तक का रिश्ता नहीं था। हां, मैं ‘फेसबुक’ की मित्र-सूची की बात
|
मनोज चाहिल जनसत्ता 17 सितंबर, 2014: जब भी मैं अपने गांव जाता हूं, मुझे मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियां याद आ जाती हैं- ‘अहा! ग्राम्य जीवन भी क्या है, क्यों न इसे सबका मन चाहे’। मैं सोचता हूं कि वह कौन-सा ग्राम्य जीवन
|
कुमार ऋषिराज जनसत्ता 16 सितंबर, 2014: भारत में अब भी उच्च प्रशासनिक अधिकारियों के लिए ‘नौकरशाह’ शब्द का इस्तेमाल होता है, लेकिन ऐसा करते हुए हम यह भूल जाते हैं कि इस शब्द की वास्तविकता क्या है? यह शब्द
|
विशाल कसौधन जनसत्ता 15 सितंबर, 2014: सुबह-सुबह घर से निकल कर थोड़ी दूर ही चला था कि कदम अचानक थम गए। कानों में चाय की दुकान से उठती मजहब, कौम और दंगों को लेकर चल रही गुफ्तगू में शरीक होने पहुंच गया। गांवों
|
अनुज दीप यादव जनसत्ता 12 सितंबर, 2014: नरेंद्र मोदी की तथाकथित विकासोन्मुखी सरकार के सौ दिन पूरे होने के साथ ही उनके उस ‘गुजरात मॉडल’ का सच देश के सामने आने लगा है, जिसके दम पर वे सोलहवीं लोकसभा में पूर्ण बहुमत के
|
|
आतिफ़ रब्बानी जनसत्ता 11 सितंबर, 2014: तमाम हथकंडों के बीच, दूसरे अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के बारे में झूठा प्रचार करना फासीवादियों या दक्षिणपंथी-सांप्रदायिक समूहों का पुराना हथकंडा रहा है। इसी संदर्भ में
|
विष्णु बैरागी जनसत्ता 9 सितंबर, 2014: प्रधानमंत्री जन-धन योजना का स्वरूप और अंतिम लक्ष्य अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन बैंकरों में इसका आतंक छाया हुआ है। अखबारों में इससे संबंधित जो विज्ञापन आए, उनमें भी कोई बहुत
|
वर्षा जनसत्ता 8 सितंबर, 2014: अंगरेजी की एक शब्दावली मुझे बहुत अच्छी लगती है- ‘आॅफ द रिकॉर्ड’। दरअसल, ‘आॅन द रिकॉर्ड’ जो चीजें होती हैं, ‘आॅफ द रिकॉर्ड’ उनका दूसरा ही रूप सामने आता है। बल्कि इसमें चीजें ज्यादा साफ
|
ओम वर्मा जनसत्ता 5 सितंबर, 2014: सन 1967-68 में नौवीं कक्षा में हमें जीव-विज्ञान और रसायनशास्त्र पढ़ाते थे पंड्याजी। एक अन्य सेक्शन में यही विषय अवधेशजी पढ़ाते थे। अवधेश सर के पढ़ाने के
|
अरुण माहेश्वरी जनसत्ता 4 सितंबर, 2014: अगर आपने हिटलर की आत्मकथा ‘मीन कैम्फ’ को पढ़ा हो तो यह समझने में शायद एक क्षण भी नहीं लगेगा कि सांप्रदायिक नफरत फैलाने के उद्देश्य से भारत में अभी ‘लव जेहाद’ के
|
|
|
|
|
|