सीरज सक्सेना जनसत्ता 18 सितंबर, 2014: बेजिंग से लगभग दो घंटे की हवाई यात्रा कर चांगचुन पहुंचा। दिल्ली हवाई अड्डे पर जम्मू के शिल्पकार चंद्र प्रकाश से मुलाकात हो गई थी। हम दोनों एक ही कला आयोजन में भाग लेने आए हैं। चीन के प्रगतिशील शहर चांगचुन में एक महीने का अंतरराष्ट्रीय सिरेमिक कला सिंपोजियम है। इक्कीस देशों के छियालीस कलाकार इसमें भाग ले रहे हैं। चीन के भी दस कलाकार हैं। सड़कें यहां साफ और गड्डे रहित हैं। मेरे आग्रह पर आयोजकों ने एक साइकल दी है। अपने होटल से कार्यस्थल तक उसी से आता-जाता हूं। यहां होने वाले सृजन का विषय है अनंत की शास्त्रीयता। यहां तीन तरह की मिट्टी उपलब्ध है। हर कलाकार अपनी रुचि से मिट्टी चुन रहा है। हर कलाकार अपनी रचना प्रक्रिया में मग्न है। मेरी पड़ोसी कलाकार रूस की स्वेतलाना हैं। वे मूलत: मूर्तिकार हैं, उन्हें पत्थर में आकार गढ़ना पसंद है। वे मिट्टी से मानव युगल रूप प्रकट कर रही हैं। उन्हें अंगरेजी और मुझे रूसी नहीं आती, इसलिए उनके लिए मरीना और मेरे लिए चौ व्हींग दुभाषिए का काम कर रही हैं। अपनी बात दो भाषाओं से होकर पहुंचाना रोचक तो है, पर अधिक समय के लिए उत्साह शिथिल हो जाता है। यह भी यहां घट रहे मेरे अनुभव और समय का एक अभिन्न अंग है। मेरे दूसरे पड़ोसी कलाकार ओसामा कायरो मिस्र से आए हैं और ज्यामितीय आकारों में कुछ संयोजन कर रहे हैं। काम करते हुए अरेबियन संगीत उनके साथ रहता है, जो काफी कुछ हिंदी फिल्म संगीत के करीब है। पाल्मा हंगरी से आई हैं, छोटे-छोटे चौकोर आकारों को जोड़ कर वे अपने शिल्पों की रचना कर रही हैं। उनके शिल्प अत्यंत नाजुक और संवेदनशील हैं। अपने काम की तरह वे खुद भी शालीन और कम बोलने वाली कलाकार हैं। सिडनी के डेविड चक्र की तरह रूप रच रहे हैं। अपने काम वे खुले आकाश में प्रदर्शित करते हैं, छोटे-बड़े गोलाकारों को एक-दूसरे के ऊपर रख कर शिल्प को खड़ा करते हैं। बुल्गारिया की लिलिया लकड़ी और पत्थर में शिल्पों की रचना करती हैं। मिट्टी से काम करने का उनका यहां पहला अनुभव है। मिट्टी का नाजुक मिजाज उनके शिल्पों को बड़ा होने से रोक रहा है, उनके शिल्प मिट्टी की बुनावट हैं। आयरलैंड के डेविड अपने देश की स्वतंत्रता के लिए उत्साहित हैं। वे लंदन में पढ़े और अब वहीं रहते हैं। ताश के पत्तों को मिट्टी से बना रहे हैं। मिट्टी के ताश के पत्तों के घर बना रहे हैं। छोटे-छोटे जोकर उनके घर पर चढ़ कर नृत्य कर रहे हैं और ताश के पत्तों को अपनी समझ से उठा कर कहीं ले जा रहे हैं। स्वभाव से वे भी मजाकिया मिजाज के हैं, किसी की भी मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। कोरिया के युन छू बिजली के चाक पर अपने पात्र
बना रहे हैं। उन्हें चाक से उतार कर अपनी अनोखी तकनीक से पात्र की सतह पर छोटे-छोटे मिट््टी के बिंदु या बुंदे रचते हैं। उनके पात्र अनोखे हैं, यहां सभी कलाकारों को उनके पात्रों ने प्रभावित किया है। वे अपने पात्रों के रंग और उनके रूपों को लेकर भी काफी सजग हैं। कोरिया में वे अपनी एक डिजाइन यूनिट भी चलाते हैं। उनके काम में समकालीनता और आधुनिकता का सुंदर तालमेल है। चंद्र प्रकाश अपनी टेबल पर छोटे-छोटे ज्यामितीय आकार बना रहे हैं, जैसे अपने सपनों का शहर बसा रहे हों। वे मूलत: शिल्पकार हैं और हर तरह के पत्थर में शिल्प गढ़ चुके हैं। चीनी मिट्टी में उनका यह पहला काम है। जल्द ही उन्होंने मिट्टी की तासीर को समझ लिया है और मिट्टी के छोटे-छोटे आकारों का एक ही शिल्प में समावेश करने की उनकी योजना है। उनसे हिंदी में ही बात होती है। यहां उनके होने से हिंदी की उपस्थिति भी बनी हुई है। इस यात्रा में उनसे मित्रता भी एक उपलब्धि है। यूके्रन की अन्ना चावस डेकोरेटिव और अप्लाइड आर्ट में शिक्षित हैं, छोटे-छोटे कटोरीनुमा गोलाकार सिरेमिक आकारों को डोरी में पिरो कर वे अपने काम को दीवार पर प्रदर्शित करेंगी। समकालीन हस्तशिल्प को उनके काम में देखना सुखद होगा। इंगुना और मेलिसा दोनों मिल कर काम करती हैं। लाटविया से आर्इं ये कलाकार पिछले सोलह सालों से साथ काम कर रही हैं। उनकी कला में माटी रूप और उस पर रेखांकन और रंग महत्त्वपूर्ण हैं। दो कलाकारों को साथ काम करते देखना रोचक अनुभव है। मिट्टी के इस उत्सव में इतने कलाकारों को एक ही प्रांगण में एक साथ देखना, उनसे बात करना बिरल और महत्त्वपूर्ण अनुभव है। हमारी मिट्टी कितने रूपों को उजागर करती है, कितने स्थानों तक ले जाती है, कितने कलाकार मित्रों से मिलवाती है। कितना कुछ छिपा है इस मिट्टी में! हमारे भीतर जो रूप छिपे हैं और बाहरी संसार में जो घट रहा है उससे रूबरू कराती है मिट्टी। मिट्टी को अपने जीवन, अपने कर्म के लिए चुनना खुद को पूर्ण होते हुए महसूस करना है।
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