वर्षा जनसत्ता 8 सितंबर, 2014: अंगरेजी की एक शब्दावली मुझे बहुत अच्छी लगती है- ‘आॅफ द रिकॉर्ड’। दरअसल, ‘आॅन द रिकॉर्ड’ जो चीजें होती हैं, ‘आॅफ द रिकॉर्ड’ उनका दूसरा ही रूप सामने आता है। बल्कि इसमें चीजें ज्यादा साफ होती हैं, मजबूती से कही जाती हैं। आप खुद के बारे में भी ‘ऑन द रिकॉर्ड’ कुछ और कहना पसंद करते हैं और ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ असलियत जुदा होती है। बल्कि कई बार हम खुद से भी ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ बात करना पसंद करते हैं। यानी ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ हम ज्यादा ईमानदार होते हैं और ‘ऑन द रिकॉर्ड’ ज्यादा रणनीतिक। झूठ हम ‘ऑन द रिकॉर्ड’ बोलते हैं, सच ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ होता है। मसलन, फलां जगह रेल हादसे में आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या छह होती है, यही आंकड़ा वास्तव में छत्तीस हो सकता है। किसी के साथ दफ्तर में कोई अत्याचार हुआ। खुले तौर पर कोई उसके साथ नहीं खड़ा है और खामोशी छाई है, लेकिन अलग से सब कुछ न कुछ बोल रहे हैं। अलग से लोग अपनी आवाज उठाना चाहते हैं। बताना चाहते हैं कि उस व्यक्ति के साथ ठीक नहीं हुआ, क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी जगह एक दिन आप भी पाए जा सकते हैं। लेकिन जब तक खुद की बारी नहीं आती, हम ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ ही अपनी बात कहेंगे। जब खुद की बारी आएगी तो हम वही बात सामने बोलने लगेंगे। लेकिन मजेदार है कि तब बाकी सारे लोग ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ चले जाएंगे। हमारे नेता लोग ज्यादातर परदे के पीछे ही राजनीति करते हैं। सामने से बढ़िया-बढ़िया बोलते हैं। दंगे परदे के बाहर होते हैं, लेकिन दंगे कैसे कराए जाते हैं, यह बंद कमरों की राजनीति में तय होता है। मुजफ्फरनगर जलने लगा, क्योंकि परदे के पीछे वोट की राजनीति की जा रही थी। दंगों के सारे आंकड़े, सारी सच्चाई ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ दर्ज होती है। शहर जलने लगता है, इंसानियत धुआं हो जाती है, बस्तियां उजड़ जाती हैं, महिलाओं से बलात्कार होता है...! कितने मरे, मारे गए, सरकारी फाइलें आधिकारिक रूप से झूठ का रिकॉर्ड दर्ज करती हैं, ताकि असल बात दबी रहे। बंद कमरों में दंगों पर राजनीति करने वालों की चाल कामयाब हो जाती है, वोट बैंक की राजनीति दंगों में
खूब फलती-फूलती है। लेकिन लोगों के सामने नेता लोग टसुए बहाते हैं, लिजलिजे शब्दों के मरहम रखते हैं। नेता लोग तो इतने परदे के पीछे होते होंगे कि उनकी असलियत क्या है, वे खुद ही भूल जाते होंगे।हमने जाना कि इराक पर अमेरिका ने क्यों हमला किया! सीरिया, नाइजीरिया की सच्चाइयां ‘ऑन द रिकॉर्ड’ दर्ज हैं। लेकिन ‘ऑफ द रिकॉर्ड’ हथियार खपाने के लिए किए जा रहे हैं युद्ध। मानवता की दुहाई देने वाले चाहते हैं कि धरती के किसी कोने पर जलती रहे आग, बराबर धुआं उठता रहे, नफरत-हिंसा फैलती रहे, ताकि खपते रहें हथियार, फलती-फूलती रहें हथियार बनाने वाली फैक्ट्रियां। परदे के पीछे युद्ध की यह हकीकत सबसे ज्यादा खतरनाक है। और यह तय है कि युद्ध में जीतता कोई नहीं, मारे जाते हैं दोनों ही खेमों के लोग। कहीं कम, कहीं ज्यादा। आखिर क्यों ‘आॅफ द रिकॉर्ड’ हमारी सच्चाई जुदा होती है? हम जो हैं, जैसे हैं, वैसे ही दिखते क्यों नहीं? छद्म के आवरण में क्यों ढंके रहते हैं? यह भी कि लोग ऐसी ही चीजों को जानना-देखना चाहते हैं, उन्हें यही पसंद है। हम खुद से और सबसे झूठ बोलते रहते हैं। हमारे झूठ, हमारी सच्चाइयां, ईमानदारी, बेइमानियां, जिंदगी और हमारा प्रेम...! बाहर और भीतर में कितना फर्क आ जाता है। सच तो यह है कि धरती सामने से खूबसूरत है, चांद सपनीला, हवा-पानी, मिट्टी-धूप सब हमारे साथ हैं। यह बात ‘ऑन द रिकॉर्ड’ ही दर्ज होनी है।
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