महेंद्र राजा जैन जनसत्ता 8 सितंबर, 2014: कुछ समय पहले ब्रिटेन में कंजर्वेटिव सांसद बॉब ब्लैकमैन ने मांग की कि ब्रिटेन में ईद और दिवाली के दिन भी सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाना चाहिए। इंटरनेट पर डेढ़ लाख से अधिक लोगों ने उनकी इस मांग का समर्थन किया। पर बिजनेस मंत्री जेनी विलॉट ने बॉब ब्लैकमैन की बात यह कह कर खारिज कर दी कि ‘मैं जानती हूं आपको निराशा होगी, पर इससे देश को वित्तीय दृष्टि से काफी क्षति होगी’। इसके जवाब में ‘द इंडिपेंडेंट’ समाचारपत्र की स्तंभ लेखिका ग्रेस डेंट ने बॉब ब्लैकमैन की मांग का समर्थन करते हुए अपने एक लंबे लेख में लिखा कि वे भले ही हिंदू, मुसलिम, सिख या जैन नहीं हैं, पर पूरी तरह इस मांग के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि ये ऐसे सार्वजनिक अवकाश होंगे, जो सही मायने में ‘अवकाश’ के दिन होंगे। यानी इस दिन न तो कोई धार्मिक विधि-विधान करना होगा, न किसी प्रकार की सामाजिक प्रथा-रूढ़ियों आदि का पालन। क्रिसमस पर भले ही सार्वजनिक अवकाश रहता है, पर क्या वह वास्तव में अवकाश का दिन होता है? उस दिन ट्रेन, बसें नहीं चलतीं, सड़कें सुनसान रहती हैं, दुकानें, बैंक आदि सब-कुछ पूरी तरह बंद रहता है! इसके विपरीत प्रिंस विलियम और केट के विवाह के दिन घोषित अवकाश को याद करें, जिसे सही अर्थ में अवकाश का दिन कहा जा सकता था। ईद और दिवाली को अवकाश घोषित करते हुए हमें इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि ये दिन मुसलमानों और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दिन होते हैं और इन्हें राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने से विश्व में यह संदेश जाएगा कि ब्रिटेन में सभी धर्मों के अनुयायियों का स्वागत है। धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता। यही नहीं, इससे ब्रिटेन में रहने वाले लोगों को भी एक-दूसरे के संबंध में बहुत कुछ जानने को मिलेगा। सामाजिक दृष्टि से लोगों में आपसी जुड़ाव शिक्षा के साथ ही दूसरों की ‘विशेषताओं’ को जानने से भी होता है। स्कूलों में इसकी शुरुआत हो चुकी है, जब दिवाली के दिन सभी धर्मों को मानने वाले बच्चे लालटेन बना कर अपने घर ले जाते हैं और ईद के अवसर पर दुकानों में जगह-जगह ‘ईद मुबारक’ लिखा रहता है। इन विशेष अवसरों के लिए तैयार चॉकलेट के डिब्बों पर ‘हैप्पी दिवाली’ और ‘ईद मुबारक’ लिखा रहता है। मैं पिछले वर्ष दिवाली के दिन लंदन में अपने बैंक गया तो प्रवेश द्वार पर बड़े-बड़े अक्षरों में हिंदी, गुजराती और अंगरेजी में ‘हैप्पी दिवाली’ लिखा देख कर आश्चर्यचकित रह गया था। बैंक के अंदर जाने पर देखा कि स्वागत काउंटर पर दो बड़े-बड़े थालों में भारतीय मिठाइयां
रखी हुई थीं और नीचे भी मिठाई से भरे बीस-पच्चीस डिब्बे रखे हुए थे। मैं कुछ पूछता उसके पहले ही वहां बैठी महिला ने ‘हैप्पी दिवाली’ कह कर थाल में से मिठाई लेने को कहा। मैंने संकोचवश मिठाई का एक छोटा-सा टुकड़ा लिया तो उसने बड़े आग्रह से कहा ‘और लीजिए।’ ग्रेस डेंट के मुताबिक, अगर ईद और दिवाली पर सार्वजनिक अवकाश की बात मान ली जाती तो हम सभी लोगों के लिए यह जानना और मानना लाभदायक होता कि एक-दो बातों को छोड़ कर हम सभी अवकाश के दिन वही सब करते हैं जो अन्य लोग करते हैं। नए-नए कपड़े पहनते हैं, आतिशबाजी करते हैं, नाचते-गाते हैं, दोस्तों-परिचितों से मिलते हैं, विशेष रूप से बनाए गए पकवान आदि खाते हैं। दुनिया भर के देशों में सभी लोग त्योहारों के मौके पर यही करते हैं। तब फिर उनमें और हममें अंतर क्या है? ऐसी स्थिति में अगर ईद और दिवाली के बहाने साल-भर में दो-चार छुट्टियां और बढ़ जाएं तो इससे हम यह नहीं भूल पाएंगे कि दुनिया में दैनिक जीवन की कुछ छोटी-मोटी अप्रिय बातों के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ है जो हमें मिलाता है।दो नए राष्ट्रीय अवकाश अन्य धर्मावलंबियों के साथ ही अनीश्वरवादियों के लिए भी एक प्रकार की कड़ी अग्निपरीक्षा होती। यह देखना भी रोचक होता कि वे कौन-से ब्रिटिश बुलडॉग हैं जो केवल ‘सिद्धांतों’ के कारण कम से कम छुट्टी लेना पसंद नहीं करते। शायद ये वही लोग होंगे जो हर शुक्रवार को तो शौक से चिकेन टिक्का मसाला खाते हैं, लेकिन बराबर इस बात का रोना रोते हैं कि ये विदेशी हमारे देश में मिलने वाली सभी प्रकार की सुविधाओं का ‘नाजायज’ फायदा उठाते हैं। आज दुनिया भर में धर्म के नाम पर जगह-जगह जो युद्ध, मारकाट आदि की खबरें सुनने-पढ़ने को मिलती हैं, उसे देखते हुए क्या हम वर्ष में एक या दो दिन शांति के लिए नहीं रख सकते!
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