सय्यद मुबीन ज़ेहरा
जनसत्ता 17 अगस्त, 2014 : आज रिश्तों में दरारें केवल पति-पत्नी के बीच नहीं, बल्कि हर रिश्ते के स्तर पर दिखाई देने लगी हैं। ऐसा लगता है कि जीवन की तेज रफ्तारी ने जहां एक ओर दुनिया भर के लोगों को आपस में जोड़ा है, वहीं आपसी रिश्तों से दूर करने का काम भी किया है। रक्षाबंधन से तीन-चार दिन पहले दिल्ली में एक व्यक्ति ने कुछ रुपए के लिए अपनी बहन की हत्या करके भाई-बहन के रिश्ते को दागदार कर दिया। यह अकेली घटना नहीं है। अगर अपराध की घटनाओं पर नजर डालें तो ऐसी अनगिनत वारदातें मिलेंगी, जो यह बताने के लिए काफी होंगी कि हमारे समाज में रिश्तों को लेकर भावनात्मक लगाव कहीं गुम होता जा रहा है। पश्चिम में तो रिश्तों का ताना-बाना न जाने कब से बिखरा हुआ है, लेकिन अब पूरब में भी वही वातावरण बनता दिखने लगा है। पश्चिमी सोच का पीछा करने वाले हम लोग एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होते जा रहे हैं। पिछले दिनों अपने मुहल्ले में दो भाइयों का झगड़ा देखा। दोनों ने ‘एक-दूसरे के माता-पिता’ को जिस ढंग से गालियां दीं वह देख कर हैरान रह गई थी। जब गुस्सा सीमा पार कर जाता है, तो बूढ़े मां-बाप को भी नहीं बख्शता। समस्या केवल इतनी-सी है कि अगर बड़े बुजुर्ग संसार त्यागने से पहले जमीन-जायदाद का सलीके से निपटारा नहीं करते तो वे आगे के लिए अपनी ही औलादों के बीच ऐसा बीज बो देते हैं, जो रिश्तों के जोड़ को सड़क पर गाली-गलौज, मारपीट और हत्या तक से तोड़ने की ताकत रखता है। अक्सर देखा गया है कि जो औलाद कमजोर होती है या मेहनत नहीं करती उसके लिए माता-पिता का प्यार कुछ ज्यादा होता है और उन्हें लगता है कि यह कहीं पीछे न रह जाए, तब भावनात्मक लगाव के कारण वे उसके करीब हो जाते हैं। इस प्रकार अक्सर संपत्ति पर माता-पिता के निकट रहने वाली औलाद का कब्जा हो जाता है। मगर माता-पिता के आंखें बंद करने के बाद अन्य लोगों में इस संपत्ति को लेकर जिस प्रकार विवाद शुरू होते हैं उनका नतीजा अधिकतर बुरा ही होता है। दरअसल, यह राजा-महाराजा और सामंतों के घरों की बुराइयां थीं, जो हम तक आ गई हैं। मुगल सत्ता के पतन के पीछे भी लोग भाइयों के बीच के झगड़ों को एक प्रमुख कारण मानते हैं। बड़े लोगों के झगड़े पहले कभी बाहर नहीं आते थे, मगर अब लोकतांत्रिक संस्थाओं के चलते जब कोर्ट-कचहरी पहुंचते हैं तब कहीं जाकर पता चलता है कि उनके संबंधों में कितनी कड़वाहट है। हम अभी उत्तर प्रदेश में एक बड़े राजनीतिक परिवार के बीच पहली पत्नी के बच्चों और दूसरी पत्नी के बीच तल्खी देख ही रहे हैं, जो अखबारों में काफी सुर्खियां बटोर चुकी है। बड़े लोगों के पास ऐसे झगड़ों से निपटने के लिए सलाहकारों और वकीलों की फौज मौजूद होती है, जिसके चलते उन पर इनका कोई असर नहीं होता। लेकिन एकाध मकान और थोड़ी-बहुत संपत्ति रखने वाले लोग ऐसा दबाव ज्यादा दिन नहीं झेल पाते और फिर उनका टकराव किसी ऐसी दिशा में चला जाता है, जहां परिवार के परिवार नफरत की आग में भस्म हो जाते हैं। जरूरी नहीं कि बड़े लोगों के मामले कोर्ट-कचहरी में ही हल होते हों। अक्सर यहां भी षड्यंत्र होते हैं, उनमें जानें चली जाती हैं। याद होगा कि दिल्ली के फार्म हाउस में कैसे एक बड़े शराब कारोबारी और बिल्डर का उसके अपने ही लोगों ने दिन-दहाड़े संपत्ति को लेकर कत्ल कर दिया था। इसी तरह दिल्ली में एक राजनेता को उनके फार्म हाउस में उन्हीं के बेटे ने मरवा दिया था। इसके अलावा हम देखते हैं कि कैसे सम्मान और मर्यादा के नाम पर लोग अपने बच्चों को मार डालते हैं। सवाल है कि क्या बेटियों को गर्भ में मारने वाला समाज अब दूसरे रिश्तों को लेकर भी मुर्दा होता जा रहा है या समाज में धन को लेकर जिस तरह का स्वभाव बनता जा रहा है, वहां कुछ
लोगों को बिना मेहनत के कमाया गया पैसा इतना अच्छा लगता है कि वे इसके लिए किसी भी रिश्ते को खत्म करने को तैयार बैठे रहते हैं। यह एक ऐसा दौर है, जहां लोग रिश्तों को अब किसी लायक नहीं समझते। आज बड़े घरों की बुराइयां हमारे समाज में इस तरह प्रवेश कर रही हैं कि हमारे रिश्तों का ताना-बाना बिखर रहा है। हमारे एक जानकार के घर उनकी बुआ उनके दादा की बीमारी के दौरान उनकी देखभाल करने आई थीं, मगर वे ऐसा आकर बैठीं कि अब तक अदालत में जमीन-जायदाद को लेकर मामला चल रहा है। वे अपने भाई से मुकदमा लड़ती हुई दुनिया से विदा हो गर्इं, मगर आज भी मुकदमा चल रहा है। अदालतें भी ऐसे में भ्रम का शिकार हो जाती हैं, जब वे खून के रिश्तों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा देखती हैं। पहले कुछ बुजुर्ग बीच में पड़ कर मामलों को हल करवा देते थे, लेकिन अब तो बेटा तक पिता की नहीं सुनता, दूसरों की क्या सुने। इसके बावजूद जो समझदार हैं वे किसी रूप में आपस में मिल-बैठ कर समस्या हल कर लेते हैं, वरना जहां अति होती है वहां बात किसी भी हद तक पहुंच जाती है। यह केवल संपत्ति का मामला नहीं है। इंसान के मन में तरह-तरह की टूट-फूट चलती रहती है। इस मन के अंदर की अराजकता से उसके निर्णय लेने की क्षमता नष्ट हो रही है और भावनात्मक लगाव कहीं न कहीं कमजोर पड़ रहा है। इससे रिश्ते बिखर रहे हैं। मां-बाप, भाई-बहन, बेटे-बेटियां सब किसी न किसी रूप में ऐसे अराजक हो चुके हैं कि रिश्तों का सम्मान खत्म होने को है। लोग फेसबुक और ट्विटर पर दुनिया भर से जुड़ रहे हैं, पर अपनों से दूर होते जा रहे हैं। अब तो हालत यह है कि एक-दूसरे की खुशी और शोक में आना-जाना भी प्रभावित हो रहा है। अपने खून के रिश्तों तक को शादी-ब्याह में नहीं बुलाया जाता और गैरों के सामने उन्हें अपमानित करने की कोशिश की जाती है। इसके पीछे की वजह जानने के लिए हमें दिन भर टीवी चैनलों पर चलने वाले सास-बहू और परिवारों की साजिश दिखाते धारावाहिकों में झांकना होगा या फिर हमारे समाज में समाप्त होते संस्कार इसकी वजह हैं। क्या शिक्षा विफल रही है या फिर स्वार्थ के जीवाणुओं का फैलाव अधिक होता जा रहा है। कहीं यह झूठे अहंकार के संतोष का मामला तो नहीं है। या फिर ईर्ष्या इसकी वजह है। आज के दौर में हम जो देख रहे हैं वह नीचे से लेकर ऊपर तक सभी वर्गों में फैलती बुराई है। वह चाहे राजनेता हों या बड़े औद्योगिक घराने, बड़े घर या छोटे-छोटे दड़बे जैसे घर, सब जगह लगता है कि किसी ने ऐसा मंत्र फूंक दिया है कि जिससे लोगों की आंखों में बाल आ गया है और सब सिर्फ अपने बारे में सोचते हुए एक-दूसरे से इतना दूर होते जा रहे हैं, जहां करीब आने की कोई राह नहीं निकल पा रही है। क्या समाज इसके ऊपर विचार करेगा या फिर विकास के नाम पर इस गिरावट को यों ही बिखरता देखता रहेगा।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta
|