Saturday, 16 August 2014 10:36 |
जनसत्ता 16 अगस्त, 2014 : स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री के संबोधन को लेकर इस बार कुछ ज्यादा ही उत्सुकता थी तो इसकी वजहें जाहिर हैं। तीन दशक में पहली बार किसी पार्टी को लोकसभा में अपने दम पर बहुमत मिला है और सत्ता परिवर्तन ने दस साल बाद देश को नया प्रधानमंत्री दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस अवसर पर राष्ट्र से मुखातिब होने का यह पहला मौका था। फिर, इस बार के स्वाधीनता दिवस समारोह को खास बनाने के लिए सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। भाजपा सांसदों को हिदायत थी कि वे दिल्ली से बाहर न जाएं और समारोह में जरूर शामिल हों। लोग ज्यादा से ज्यादा तादाद में शिरकत करें इसके लिए मेट्रो से वहां मुफ्त जाने-आने की सुविधा दी गई। इससे पहले साल-दर-साल पंद्रह अगस्त पर तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का राष्ट्र के नाम संदेश काफी हद तक रस्मी होता था; कई बार यह भी लगता था जैसे बजट-भाषण का कोई अंश पढ़ा जा रहा हो।
नरेंद्र मोदी अपनी वक्तृता के लिए जाने जाते हैं। इस मौके पर भी उन्होंने लिखित भाषण नहीं पढ़ा, सीधे बोले। इससे कई सालों से चली आ रही एकरसता टूटी। लेकिन राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद लाल किले की प्राचीर से बोलते हुए प्रधानमंत्री उत्साह का वैसा संचार नहीं कर सके, जैसी कि उनसे उम्मीद की जा रही थी। दरअसल, उन्होंने उन कई मुद््दों को छुआ ही नहीं जिन पर उन्हें जनादेश मिला है। भ्रष्टाचार और काले धन पर लगाम लगाने और महंगाई से निजात दिलाने का सपना दिखा कर उन्होंने अपनी पार्टी को अपूर्व कामयाबी दिलाई और सरकार बनाई। पर न उन्होंने महंगाई का जिक्र किया न काले धन और भ्रष्टाचार का। उनका ज्यादा ध्यान विदेशी निवेश को महिमामंडित करने और उसके लिए माहौल बनाने पर रहा। कई बार लगा वे बाहरी निवेशकों से ज्यादा मुखातिब हैं। एफडीआइ पर इतना जोर देना, वह भी स्वाधीनता दिवस के अवसर पर, क्या राष्ट्र के मनोबल को बढ़ाने वाला है? यह चर्चा पहले से थी कि योजना आयोग का स्वरूप बदलने की तैयारी चल रही है। अब तक के अनुभवों के आधार पर आयोग को अधिक गतिशील और कारगर बनाने की पहल हो
तो किसे एतराज होगा! लेकिन प्रधानमंत्री ने जो संकेत दिए हैं उनसे यह अंदेशा पैदा होता है कि कहीं आयोग कॉरपोरेट क्षेत्र के हितों का खयाल रखने वाला निकाय तो नहीं बन जाएगा। योजना आयोग की बाबत उन्होंने जो कुछ कहा क्या उस पर मंत्रिमंडल में विचार हो चुका है? क्या वह संसद को मंजूर होगा? एक रोज पहले राष्ट्रपति ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया था जिसमें उन्होंने देश में हाल में हुई सांप्रदायिक घटनाओं और असहिष्णुता की प्रवृत्ति पर चिंता जाहिर की और देशवासियों को आगाह किया। प्रधानमंत्री के संबोधन में भी सौहार्द का संदेश शामिल था। पर यह रस्म अदायगी थी या वे सचमुच सांप्रदायिकता और कट्टरता को लेकर चिंतित हैं! यह बिल्कुल जाहिर है कि ऐसी घटनाओं के पीछे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति ही सबसे बड़ी वजह है। इसलिए रस्मी तौर पर सौहार्द की बात दोहराने से कुछ नहीं होगा, बीमारी के कारण दूर करने होंगे। स्वाधीनता दिवस के समारोह विकास की बातें दोहराने की औपचारिकता से भी भरे रहते हैं। अच्छा यह होगा कि इन्हें दोहराते रहने के बजाय हम सच्चाई से रूबरू हों। क्यों पिछले दो दशक में दो लाख से ज्यादा किसान खुदकुशी करने को मजबूर हुए? क्यों तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था और ऊंची विकास दर के दावों के बावजूद हर साल संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास रिपोर्ट में भारत दुनिया के सबसे गरीब देशों की कतार में खड़ा दिखता है? पंद्रह अगस्त हमारे देश के लिए जश्न का अवसर है तो आत्म-समीक्षा का भी।
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