Friday, 15 August 2014 09:38 |
जनसत्ता 15 अगस्त, 2014 : करीब तीन दशक पहले गंगा की सफाई के लिए सरकार ने गंगा कार्ययोजना शुरू की थी। तभी इस नदी की दशा चिंताजनक हो चुकी थी। तब से लेकर आज तक लगातार गंगा की सफाई को लेकर सरकारें अलग-अलग दावे करती रही हैं और इस मद में हजारों करोड़ रुपए बहाए जा चुके हैं। पर गंगा कितनी साफ हुई, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय ने इस मसले पर सरकार को फटकार लगाई है। बुधवार को नरेंद्र मोदी सरकार को उसके चुनावी घोषणा-पत्र की याद दिलाते हुए अदालत ने सवाल किया कि इस संबंध में तुरंत जरूरी कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं। अदालत ने इस कार्ययोजना का खाका पेश करने के लिए केंद्र सरकार को दो हफ्ते का वक्त दिया है। गौरतलब है कि भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में गंगा की सफाई को लेकर बड़े-बड़े वादे किए थे। सरकार गठन के बाद केंद्रीय जल संसाधन और गंगा सफाई अभियान मंत्री उमा भारती की शुरुआती सक्रियता और बैठकों से इस दिशा में कुछ उम्मीद भी बंधी। लेकिन ऐसा लगता है कि समय के साथ फिर से इस मामले में शिथिलता आ गई है। शायद इसी स्थिति पर सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि आपने कहा था कि इस मामले में शीघ्रता की जरूरत है; लेकिन अब आपको कोई जल्दबाजी नहीं लग रही है और इस मुद्दे को दो मंत्रालयों के बीच घुमा रहे हैं। जाहिर है, गंगा के सवाल को चुनावी मुद्दा बनाने और उसे लेकर वादे करने में आगे रहने वाली भाजपा अब खुद इस कसौटी पर है। इससे पहले भी कई बार अदालतें इस मोर्चे पर विफलता के लिए सरकारों को कठघरे में खड़ी कर चुकी हैं। अब भी इस मसले पर कई याचिकाएं अदालतों में लंबित हैं और खुद सर्वोच्च न्यायालय इस मुद्दे पर निगरानी कर रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि हजारों करोड़ रुपए खर्च करने और अदालतों की
सख्ती के बावजूद गंगा कार्ययोजना जैसी महत्त्वाकांक्षी योजना को वास्तव में जमीन पर उतारने की दिशा में औपचारिक कवायदों के अलावा कुछ खास नहीं किया गया। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए चलाए गए विशेष सामुदायिक अभियानों और सरकारी प्रयासों का शायद ही कहीं कोई असर दिखता है। लगभग ढाई हजार किलोमीटर लंबी गंगा देश में उनतीस बड़े और तेईस छोटे शहरों के अलावा अड़तालीस कस्बों से गुजरती है। रास्ते में कई छोटी नदियों और बरसाती नालों सहित गंदे पानी की धाराएं, औद्योगिक इकाइयों से निकला जहरीले रसायनों से युक्त पानी और कचरा गंगा में मिलता रहता है। इसके अलावा, अधजले शव, पशु-पक्षियों के सड़े-गले मृत शरीर, कृषि अपशिष्ट और प्लास्टिक के सामान इस नदी के प्रदूषण में कई गुना इजाफा कर देते हैं। यही नहीं, गंगा को पवित्र नदी मानने वाले लोग भी शायद कम नुकसान नहीं पहुंचाते, जब वे धार्मिक और परंपरागत सामाजिक मेलों के दौरान हर साल गंगा के किनारे पूजा-पाठ के बाद निकले कचरे और दूसरी गंदगी को सीधे नदी में फेंक देने को एक पुण्य कार्य मानते हैं। सवाल है कि गंगा सफाई अभियान में इन पहलुओं से किस तरह निपटा जाएगा। प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सभी कारकों पर काबू पाए बिना निर्मल गंगा अभियान की कामयाबी का दावा नहीं किया जा सकता।
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