Wednesday, 13 August 2014 01:07 |
जनसत्ता 13 अगस्त, 2014 : प्रधानमंत्री पांच हफ्तों के भीतर दूसरी बार जम्मू-कश्मीर गए। पिछली बार के दौरे में उन्होंने ऊधमपुर-कटरा रेलमार्ग और बारामूला जिले में दो सौ चालीस मेगावाट की जलविद्युत परियोजना का उद्घाटन किया था। लेकिन इस बार के उनके दौरे को विकास-कार्यों में केंद्र के सहयोग का भरोसा दिलाने के साथ-साथ सामरिक या रणनीतिक नजरिए से भी देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने लद्दाख के मुख्यालय लेह में भी जनसभा को संबोधित किया और करगिल में भी। करगिल में पाकिस्तान की तरफ से हुए अतिक्रमण का कटु अनुभव हमारे इतिहास का एक खास पन्ना है। लद्दाख में चीन की तरफ से होने वाले छिटपुट अतिक्रमण की खबरें जब-तब आती रही हैं। दौरे के लिए इन दोनों जगहों के चुनाव का एक खास प्रतीकात्मक महत्त्व है। पर प्रधानमंत्री के लेह दौरे को भाजपा के सियासी गणित से भी जोड़ कर देखा जा सकता है। लद््दाख की लोकसभा सीट जीत कर भाजपा ने पहली बार आम चुनाव में राज्य में जम्मू क्षेत्र से बाहर जीत दर्ज की।
लोकसभा चुनाव में जम्मू और लद््दाख में मिली शानदार सफलता ने भाजपा में यह उम्मीद जगा दी है कि वह इस राज्य में भी सरकार बना सकती है। इस साल के आखिर में राज्य के विधानसभा चुनाव होने हैं। घाटी से भाजपा कोई उम्मीद नहीं कर सकती। पर घाटी में जिन पार्टियों की पैठ है वे एक दूसरे की प्रतिद्वंद्वी हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस जरूर हाल तक साथ-साथ थीं, पर उनका गठजोड़ टूट चुका है। लेकिन टेढ़ा सवाल यह है कि अगर त्रिशंकु विधानसभा की तस्वीर उभरेगी तो कौन भाजपा के साथ गठजोड़ को तैयार होगा! बहरहाल, देश के दो अति दुर्गम क्षेत्रों के दौरे और इस अवसर पर वहां कई ऊर्जा परियोजनाओं की शुरुआत से प्रधानमंत्री ने यह संदेश देना चाहा है कि भारत के किसी भी कोने में रहने वाले लोग हों, उनका खयाल रखा जाएगा। छप्पन हजार वर्ग किलोमीटर का लद्दाख क्षेत्र और करगिल जिले का सम्मिलित क्षेत्रफल राज्य का सत्तर फीसद भूभाग है। विरल आबादी वाले ये इलाके दुनिया के सबसे ऊंचे रिहाइशी क्षेत्र भी
हैं। इन इलाकों में रहने वाले लोगों का जीवनयापन कई तरह की मुश्किलों से भरा रहा है। संपर्क और आवाजाही की कठिनाइयां तो अपनी जगह हैं ही, दूसरी ढांचागत सुविधाओं का भी अभाव रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लद्दाख में बिजली की उपलब्धता जरूरत से एक चौथाई भी नहीं रही है। बिजली की आपूर्ति या तो काफी छोटे, स्थानीय बिजलीघर से होती है या डीजल-चालित जेनरेटरों से। राष्ट्रीय ग्रिड से न जुड़े होने का दंश वे रोजाना महसूस करते हैं। ऐसे में नई ऊर्जा परियोजनाओं की शुरुआत उनके लिए काफी मायने रखती है।प्रधानमंत्री ने लेह में पैंतालीस मेगावाट की निमू-बाजगो जलविद्युत परियोजना का और करगिल में भी लगभग इतने ही मेगावाट की चुटक जलविद्युत परियोजना का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने लेह-करगिल-श्रीनगर पारेषण परियोजना की आधारशिला भी रखी, जिसे क्रियान्वित करने का जिम्मा राष्ट्रीय पॉवर ग्रिड निगम का होगा। इस परियोजना के पूरा होने पर लद्दाख को सौ से डेढ़ सौ मेगावाट बिजली की आपूर्ति बढ़ जाएगी। यों इस पारेषण परियोजना की घोषणा 2003 में ही हो गई थी, जब तत्कालीनप्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राज्य के तीन दिन के दौरे पर गए थे। तब इस परियोजना पर तीन सौ करोड़ रुपए का खर्च आने का अनुमान था। पर ढिलाई और लेटलतीफी के चलते अब संशोधित अनुमान यह है कि इस पर सत्रह सौ करोड़ से ज्यादा की लागत आएगी। यह हाल बहुत-सी अन्य परियोजनाओं का भी है।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta
|