Tuesday, 05 August 2014 13:03 |
जनसत्ता 5 अगस्त, 2014 : द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से भारत के किसी प्रधानमंत्री का नेपाल जाना सत्रह साल बाद हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेपाल जाने से कुछ दिन पहले विदेशमंत्री सुषमा स्वराज वहां गई थीं और तभी विदेश नीति में नेपाल की अहमियत बढ़ने के संकेत मिल गए थे। उन्होंने कहा कि नेपाल को भारत अपनी विदेश नीति में सर्वोच्च प्राथमिकता देता है, और अब मोदी ने दोनों देशों के रिश्तों को नई ऊंचाई पर ले जाने की इच्छा जताई है। भारत और नेपाल के लोगों में सदियों से एक दूसरे के प्रति वास्तव में काफी लगाव भरा रिश्ता रहा है। इसलिए स्वाभाविक ही मोदी की यात्रा को लेकर न केवल नेपाल के राजनीतिक वर्ग में बल्कि आम लोगों में भी उत्साह का आलम था। मोदी ने भी उन्हें निराश नहीं किया। उन्होंने जहां एक तरफ नेपाल के विकास में भारत की तरफ से मिलते आ रहेसहयोग का भरोसा बढ़ाया, वहीं लोगों के दिलों को भी छूने की कोशिश की। उन्होंने बचपन में भारत आकर खो गए नेपाल के एक युवक को उसके परिजनों से मिलाने का यही वक्त चुना, और संविधान सभा को संबोधित करते हुए पहले कुछ पंक्तियां नेपाली भाषा में कहीं।
मोदी किसी बाहरी देश के दूसरे राजनेता हैं जिन्होंने नेपाली संसद को संबोधित किया; इससे पहले 1990 में जर्मनी के चांसलर हेलमुट कोल को यह मौका मिला था। नेपाल की संविधान सभा से मुखातिब होते हुए मोदी ने कहा कि दोनों देशों के संबंध हिमालय और गंगा जितने पुराने हैं। तमाम सौहार्दपूर्ण संबंध के बावजूद नेपाल में किसी हद तक यह धारणा भी रही है कि भारत उसके अंदरूनी मामलों में दखल देता है। शायद इसी के मद््देनजर मोदी ने कहा कि नेपाल की शांति प्रक्रिया उसका आंतरिक मामला है और इसे कैसे तर्कसंगत परिणति तक ले जाना है यह नेपाल को ही तय करना है। मोदी ने नेपाल के विकास में भारत के सहयोग की प्रतिबद्धता का इजहार करते हुए रियायती ब्याज दर पर एक अरब डॉलर के कर्ज की घोषणा की, जो कि खासकर ढांचागत परियोजनाओं के लिए होगा। बांग्लादेश के लिए भी भारत ने 2010 में इतना ही रियायती ऋण मंजूर किया था, जब वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना दिल्ली आई थीं। इसके अलावा, मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील
कोइराला की मौजूदगी में तीन समझौते हुए, जो घेघा रोग से जूझ रहे नेपाल को आयोडीनयुक्त नमक की आपूर्ति, वहां आयुर्वेद को बढ़ावा देने और पर्यटन की संभावनाएं बढ़ाने से संबंधित हैं। भारत फिलहाल तीन हजार नेपाली छात्रों को वजीफा देता है। मोदी ने इसमें बढ़ोतरी का आश्वासन दिया। दोनों देशों के बीच महाकाली नदी पर बनने वाली पांच हजार छह सौ मेगावाट की बहुउद््देश्यीय परियोजना का काम तेज करने की सहमति बनी। मगर जिस ऊर्जा करार की काफी चर्चा थी, उस पर हस्ताक्षर नहीं हो सके, इसलिए कि इसमें निवेश संबंधी प्रावधान के स्वरूप को लेकर नेपाल को यह शंका थी कि उसकी ऊर्जा परियोजनाओं में भारत की दखलंदाजी का रास्ता खुल जाएगा। इस करार को विस्तृत समीक्षा के लिए टाल दिया गया। यह प्रसंग बताता है कि नेपाल के साथ अपने रिश्तों को नई ऊंचाई देने के प्रयास में हमें उत्साह के साथ-साथ सावधानी भी बरतने की जरूरत है। मोदी की यात्रा संपन्न होने के साथ ही यह भी खबर आई कि बिहार के कोशी क्षेत्र से हजारों लोगों को बाढ़ की आशंका के चलते पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। यह बात काफी समय से कही जाती रही है कि बिहार की बाढ़ की समस्या का समाधान नेपाल के सहयोग के बिना नहीं हो सकता। दोनों देशों को इस बारे में जल्द ही कोई ठोस साझा पहल करनी चाहिए। मोदी ने काठमांडो के पशुपतिनाथ मंदिर में रुद्राभिषेक करवाया और पच्चीस करोड़ की राशि धर्मशाला निर्माण के लिए मंदिर प्रबंधन को दी। बेहतर हो प्रधानमंत्री के नाते मोदी एकतरफा धार्मिक संदेशों के प्रसार को लेकर सजग दिखाई दें।
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