विजया सती जनसत्ता 2 अगस्त, 2014 : लगभग चार महीने बाद अब भाषा की यह लय हमारे लिए सुपरिचित हो गई है- अन्योंहासेयो, यानी नमस्कार और खाम्साहमनिदा, यानी धन्यवाद जैसे शब्द उन्हीं की तरह हम भी बोल लेते हैं। भारत के प्रति लगाव रखने वाले अनजान लोग भाषा की बाधा के बावजूद जब मित्रवत आचरण करते हैं तो अजनबीपन और परायापन अपने आप समाप्त होने लगता है। दूसरे देश की धरती पर पहला कदम अनजाना-सा लगता है। धीरे-धीरे रघुवीर सहाय की भाषा में ‘आज फिर शुरू हुआ जीवन’ की आनंदमय स्थिति आने लगती है और सब दूरियां समाप्त हो जाती हैं। दक्षिण कोरिया की राजधानी सिओल में भीड़ बहुत है, इसलिए सब-वे में बैठने की जगह हमेशा नहीं मिलती। एक दिन सफर के दौरान बुजुर्ग कोरियन दंपति ने भाषा न समझते हुए भी बैठने की एक जगह खाली होने पर ऐसा आग्रह किया मुझसे ‘तुम्हीं बैठ जाओ’ का कि इनकार करते न बना। यहां आदर व्यक्त करने का तरीका एकदम भारतीय-सा है। बल्कि हमसे ज्यादा ही झुकते हैं कोरियाई लोग नमस्कार और विदा कहते हुए। विद्यार्थी कक्षा में एक छोटा-सा कागज का टुकड़ा भी दोनों हाथों से संभाल कर आदर सहित देते हैं और लेते भी उसी प्रकार हैं- दोनों हाथ बढ़ा कर, अदब से सिर झुका कर! विश्वविद्यालय परिसर में सभी कक्षाएं कम्प्यूटर, इंटरनेट, माइक और प्रोजेक्टर से लैस हैं। कभी किसी गीत, कभी वृत्त-चित्र या फिल्म के टुकड़े के माध्यम से हिंदी पढ़ाना और अतुल्य भारत का परिचय देना जहां आनंद का सबब होता है, वहीं ऐसे प्रश्नों का सामना करने का दम भी संजोना पड़ता है कि क्या भारत में हिंदी पढ़ने जाना खतरे से खाली नहीं है? सिओल को यहां ‘सोल आॅफ एशिया’ कह कर विज्ञापित किया गया है। सभी कोरियावासी मातृभाषा बोलते हैं, दूसरे को जरूरत हो, तभी अंगरेजी का हाथ थामते हैं। लेकिन खयाल रखा गया है कि आगंतुक परेशानी में न पड़ें, इसलिए टैक्सी में ‘इंटरप्रेटेशन’ यानी अनुवाद की सुविधा है। शाकाहारी लोगों के लिए सिओल एक कठिन जगह है। कोरियाई भाषा की लिपि हंगुल है। कोरियाई भाषा में देश का नाम हंगुक है, जैसे अंग्रेजी का ‘इंडिया’ हमारा भारत है। हिंदी वर्णमाला की तरह स्वर और व्यंजनों से बनी हंगुल भाषा को यह रूप देने में देश के लोकप्रिय राजा सेजोंग की दिलचस्पी का योगदान है, जिनका जन्मदिन यहां अध्यापक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विद्यार्थी अपने उन अध्यापकों से मिलने जाते हैं जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं या अस्वस्थ हैं। उच्चारण में यहां ग को क या क को ग कहने में हर्ज नहीं होता, र और ल भी आपस में मिल जाते हैं। इसलिए आप दूर नहीं ‘दूल’ जा सकते हैं। किम, पार्क, ली, लिम और शिन- इन्हीं पारिवारिक नामों का बोलबाला है। इनके पूरे नाम
का उच्चारण पहले-पहल कठिन मालूम होता है। प्रेम की स्वच्छंदता बहुत देखने में नहीं आती। विश्वविद्यालय के गलियारों में कॉफी और कोल्ड ड्रिंक की मशीनों की व्यस्तता सोचने को विवश करती है कि कितनी खपत है इनकी यहां! युवा हर पल इतने उत्साह से भरे रहते हैं कि विश्वविद्यालय के आंगन में हर दिन कोई न कोई आयोजन होता है। स्मार्टफोन के दीवाने छात्रों का सब कुछ उसी में समाया हुआ है- सब-वे के नक्शे से लेकर हिंदी शब्दकोश तक।इस बड़े शहर में यातायात का सबसे अच्छा साधन कई लाइन वाली सब-वे है। आसपास के सभी शहर भीतर ही भीतर जोड़ दिए गए हैं, जैसे हमारे गुड़गांव और नोएडा। नए यात्रियों को बड़े-बड़े स्टेशनों के भीतर परेशानी इसलिए नहीं होती कि हर लाइन का अपना एक रंग है और प्लेटफॉर्म पर दूसरी लाइन तक पहुंचने के लिए उसी रंग की पट्टी आपको राह बताती है। कोरिया-पर्यटन एक अद्भुत सक्रिय संस्था है जो पर्यटकों को सहायता प्रदान करने के साथ-साथ पर्यटन और संस्कृति से संबद्ध अनेक निशुल्क कार्यक्रम प्रायोजित करती रहती है। विभिन्न शहर अपनी संस्कृति का परिचय देने वाले आयोजनों में विदेशी नागरिकों की उपस्थिति को इसलिए महत्त्वपूर्ण मानते हैं कि वे इस पहचान को दूर देश लेकर जाएंगे। इसी प्रकार के एक लोकप्रिय पर्यटन कार्यक्रम ‘टेम्पल स्टे’ में शामिल होने का अवसर मिलने पर हमने एक विशिष्ट बौद्ध मंदिर की उन प्रमुख गतिविधियों में हिस्सा लिया, जो भिक्षु के साथ आसन, ध्यान, वन-भ्रमण से लेकर चाय और भोजन की पारंपरिक पद्धति को जानने तक फैली हुई थी। कोरिया में बौद्ध धर्म की उपस्थिति दर्शन और संस्कृति के रूप में है, औपचारिक धर्म के रूप में नहीं। अधिकतर बौद्ध मंदिर आबादी से दूर शांत स्थानों पर बने हैं, आमतौर पर पहाड़ों और घने पेड़ों से घिरे। जीवन को सरल बना देने वाली छोटी-छोटी चीजों को तकनीकी स्तर पर ऐसा दुरुस्त किया गया है कि बौद्ध मंदिर में प्रोजेक्टर पर फिल्म प्रस्तुति हुई और भिक्षु-गुरु ने उपस्थित जनों के लिए विशिष्ट चाय अपने आसन पर विराजे हुए ही बिना किसी तामझाम के बनाई!
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