Monday, 21 July 2014 11:43 |
जनसत्ता 21 जुलाई, 2014 : बंगलुरु में छह साल की एक बच्ची के साथ हुए बलात्कार ने स्वाभाविक ही इस महानगर को काफी विचलित किया है। इस तरह की कोई भी घटना शर्मनाक ही कही जाएगी। लेकिन बंगलुरु का यह वाकया एक स्कूल में हुआ, जहां अभिभावक यह मान कर चलते हैं कि बच्चे पूरी तरह सुरक्षित होंगे। बलात्कार के आरोपी स्कूल के ही दो कर्मचारी हैं, जिनमें से एक व्यायाम शिक्षक है और दूसरा चौकीदार। दोनों फरार हैं और पुलिस उनकी तलाश में जुटी हुई है। उम्मीद की जा सकती है कि पुलिस जल्दी ही धर दबोचने में सफल हो जाएगी। लेकिन इतने से बात खत्म नहीं हो जाती। इस मामले में स्कूल के रवैए से बच्ची के माता-पिता समेत तमाम अभिभावक हैरान हैं। घटना दो जुलाई को हुई, पर दस दिन तक स्कूल के प्रबंधकों ने इसकी सूचना न बच्ची के माता-पिता को दी, न पुलिस को। इससे यह संदेह पैदा हुआ है कि कहीं वे मामले को दबाने और आरोपियों को बचाने की कोशिश तो नहीं कर रहे थे। भरोसा टूटने के इस सदमे ने ही लोगों को विरोध-प्रदर्शन के लिए मजबूर किया। उन्हें लगता है कि बच्चे अगर स्कूल में सुरक्षित नहीं हैं तो उनकी सुरक्षा को लेकर वे कैसे आश्वस्त हो सकते हैं? घटना के विरोध में न सिर्फ स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के साथ-साथ और भी नागरिक समूह सड़कों पर उतर आए। यह मामला विधानसभा में भी उठा। राज्य के शिक्षा विभाग ने संबंधित स्कूल को दिया हुआ अनापत्ति प्रमाणपत्र वापस ले लिया है। विबग्योर हाइ नामक यह पब्लिक स्कूल आइसीएसइ से संबद्ध है। शिक्षा विभाग ने आइसीएसइ से स्कूल की मान्यता रद्द करने को भी कहा है। दूसरी ओर, केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने कर्नाटक के शिक्षा विभाग से इस मामले में रिपोर्ट तलब की है। जाहिर है, इस घटना के तूल पकड़ने के बाद चिंता जताने में कोई पीछे नहीं रहना चाहता। विबग्योर स्कूल के खिलाफ निश्चय ही ऐसी कार्रवाई की जानी चाहिए, जो एक मिसाल बने। पर शिक्षा महकमा क्या इस बात से अनजान है कि दाखिले से पहले कुछ संभ्रांत माने जाने वाले स्कूल अभिभावकों
से इस आशय के कागज पर हस्ताक्षर करवाते हैं कि स्कूल परिसर में कोई दुर्घटना होने की सूरत में उनकी जिम्मेवारी नहीं होगी। जबकि बच्चों की हिफाजत उनकी जिम्मेदारी है। फिर, फीस के तहत वे सुरक्षा पर आने वाला खर्च भी वसूलते हैं। जब उत्तर प्रदेश के किसी देहाती-पिछड़े इलाके में बलात्कार होने की खबर आती है, तो उसे शौचालय की समस्या से भी जोड़ कर देखा जाता है। लेकिन बंगलुरु की यह घटना बताती है कि लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा का सवाल बहुत व्यापक है और इसके अनेक आयाम हैं। बहुत सारे मामलों में बलात्कार सामाजिक उत्पीड़न का हिस्सा होता है, बहुत सारे मामलों में किसी परिवार या समुदाय से बदला लेने, उन्हें आतंकित करने के हथियार के तौर पर भी इसे आजमाया जाता है। ऐसी घटनाओं को एक मध्ययुगीन मानसिकता से जोड़ कर देखा जाता रहा है, जिसमें स्त्री की देह को लड़ाई का मैदान समझा जाता है। लेकिन बंगलुरु की घटना देश के एक आधुनिक महानगर की है, जिसने सूचना प्रौद्योगिकी के केंद्र के रूप में सारी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। अगर ऐसे इलाके में भी ऐसी स्तब्ध कर देने वाली घटना होती है, तो सवाल है कि हम कैसा समाज और कैसा देश बना रहे हैं! यह सवाल इसलिए भी उठता है कि बलात्कार के बहुत सारे मामलों में अपराधी परिजन, पड़ोसी और रिश्तेदार होते हैं। स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ और भी प्रश्नों पर हमें सोचना होगा।
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