महावीर सरन जैन जनसत्ता 17 जुलाई, 2014 : महंगाई छूमंतर करने के वादे पर जो सरकार आई, उसने आते ही दो महीनों में
महंगाई और बढ़ा दी। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बजट में कीमती पत्थर, हीरा और पैक्ड फूड सस्ता कर दिया। मेरा सवाल है कि इससे देश के गरीब आदमी और नव मध्यवर्ग को क्या फायदा पहुंचेगा?
बजट केवल घोषणाओं से भरा है। सामाजिक सरोकारों की जिन योजनाओं के लिए वित्तमंत्री ने जिस राशि की घोषणा की है उसको सुन कर लग रहा था कि यह भारत का बजट नहीं है, किसी महानगर का बजट है। पिछले साल चिदंबरम के बजट के बाद जेटली ने बार-बार कहा था कि आय कर की छूट-सीमा कम से कम पांच लाख होनी चाहिए। अब क्या हुआ? देश पर अकाल की छाया मंडरा रही है। उससे निबटने के लिए कोई सकारात्मक सोच नहीं है। बेरोजगारी दूर करने, घर चलाने वाली महिलाओं की पीड़ा कम करने की कोई सोच नहीं है। वोट आम आदमी के नाम पर, फायदा कॉरपोरेट घरानों को। सामाजिक सरोकारों से संबंधित अट्ठाईस योजनाओं के लिए आपने सौ-सौ करोड़ की लॉलीपॉप घोषणाएं कर दीं। आप भारत का बजट पेश कर रहे थे या अमृतसर शहर का? वित्तमंत्री जेटली ने खुद कहा था कि देश में आलू और प्याज की भरपूर पैदावार हुई है और इनके दाम बढ़ने का कारण जमाखोरी है। आखिरकार भाजपा ने भी यह स्वीकार कर लिया कि महंगाई का बहुत बड़ा कारण जमाखोरी और बिचौलिए हैं। हम बहुत पहले से कहते आए हैं कि किसान की किसी उपज को अगर उपभोक्ता दस रुपए में खरीदता है तो किसान को अपनी उपज का केवल दो रुपया ही मिल पाता है। बाकी का मुनाफा कौन चट कर जाता है? धूमिल की कविता की पंक्तियां हैं- एक आदमी रोटी बेलता है/ एक आदमी रोटी खाता है/ एक तीसरा आदमी भी है/ जो न रोटी बेलता है न रोटी खाता है/ वह सिर्फ रोटी से खेलता है। विचारणीय है कि रोटी से खेलने वाला आदमी एक नहीं, वे अनेक बिचौलिए हैं जिनके अनेक स्तर हैं और हरेक स्तर पर मुनाफावसूली का धंधा होता है। खुदरा व्यापार में मिलावट करने, घटिया और नकली माल देने, कम तौलने आदि की शिकायतें भी आम हैं। हमारी अर्थव्यवस्था में जो दुर्दशा किसान की है वैसी ही स्थिति कामगारों और कारीगरों की भी है। सरकार ने कागजी व्यवस्था कर दी है कि किसान मंडी में जाकर अपनी फसल सीधे ग्राहक को बेच सकते हैं। इस व्यवस्था को अमली जामा पहनाने की जरूरत है। किसान को मंडी के कमीशन एजेंटों के चंगुल से छुड़ाने के लिए मंडी की वर्तमान व्यवस्था को बदलने की जरूरत है। यह नियम बनाना होगा कि किसान मंडी में बिना कमीशन एजेंट को मोटी रकम दिए प्रवेश कर सके। हर मंडी में किसानों के अपना माल बेचने के लिए स्थान बनाना होगा। ऐसी व्यवस्था स्थापित करनी होगी जिससे रोटी बेलने वाले और रोटी खाने वाले के बीच के बिचौलिए मुनाफावसूली का काला धंधा न कर सकें। इससे भाजपा पर जो आरोप लगता रहा है कि वह जमाखोरों और बिचौलियों के प्रति मरमी वरतने वाली पार्टी है, उस आरोप के काले दाग धुल सकेंगे। किसान और ग्राहक के बीच के मुनाफाखोर बिचौलियों, मंडी के दलालों और जमाखोरों के शोषण से निजात दिलाने के लिए बजट में कोई ‘विजन’ नहीं है। वित्तमंत्री कहते हैं कि किसान मंडी में जाकर सीधे अपना माल ग्राहक को बेच सकते हैं। मगर किसान मंडी में जाकर, एजेंटों और दलालों को भेंट चढ़ाए बिना, अपना माल सीधे ग्राहक को बेच सकें- इसके लिए बजट में कोई दिशा या प्रयास अथवा संकेत नहीं है। वित्तमंत्री जी, आप यह व्यवस्था कर दीजिए। महंगाई अपने आप कम हो जाएगी। मगर इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए। इसके लिए आम आदमी के सरोकारों को पूरा करने का जज्बा होना चाहिए। सत्ता प्राप्त करने के पहले भाजपा के नेता बार-बार चिल्लाते थे कि गरीब किसानों को ब्याज-मुक्त ऋण मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए। इस बजट में वह व्यवस्था नदारद है। यह बजट गरीब किसानों की आशाओं पर कुठाराघात है। मोदी सरकार को मनमोहन सरकार का आभारी होना चाहिए कि विरासत में 698 लाख टन का खाद्यान्न भंडार मिला है। आप इसका बीस प्रतिशत भाग ही बाजार में उतार दीजिए। जमाखोरों की हालत पतली हो जाएगी। मगर इसके लिए भी दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए। मनमोहन सिंह सरकार और मोदी सरकार के बजट में एक अंतर जरूर है। मनमोहन सिंह सरकार जो योजनाएं कांग्रेसी नेताओं के नाम पर चला रही थी, अब मोदी सरकार उन्हीं योजनाओं को श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर चलाएगी। गांवों को शहर से जोड़ने वाली ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ के अंतर्गत चिदंबरम ने जितनी धनराशि का प्रावधान किया था उसमें आपने जबर्दस्त कटौती अवश्य कर दी। यह दर्शाता है कि भारत के गांवों और किसानों और मजदूरों के हितों के प्रति आप कितने गंभीर हैं। आम बजट में महिलाओं की सुरक्षा के लिए महज सौ करोड़ का प्रावधान करते समय वित्तमंत्री को तनिक झेंप नहीं हुई। क्या वे योजना का नाम गिनाने के लिए बजट पेश कर रहे थे? महिलाओं की सुरक्षा की योजना के कार्यान्वयन के लिए मोदी सरकार कितनी संजीदा है- यह सौ करोड़ के झुनझुने से स्पष्ट है। बजट में काले धन की उगाही के लिए किसी कार्यक्रम के कोई संकेत नहीं हैं। आम चुनावों के दौरान अपने को भारत का ‘चाणक्य’ मानने वाले और खुद को बाबा कहने वाले सज्जन ने बार-बार उद्घोष किया कि विदेशों में इतना काला धन जमा है कि अगर मोदीजी की सरकार आ गई तो देश की तकदीर बदल जाएगी, बीस वर्षों तक किसी को आय कर देना नहीं पड़ेगा, हर
जिले के हर गांव में सरकारी अस्पताल खुल जाएगा, कारखाने खुल जाएंगे, बेरोजगारी दूर हो जाएगी और देश की आर्थिक हालत में आमूलचूल परिवर्तन हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि सोनिया गांधी के इशारों पर चलने वाली सरकार के पास उन तमाम लोगों की सूची है जिनका काला धन विदेशों के बैंकों में जमा है। उस सूची को सोनिया की सरकार जगजाहिर नहीं कर रही, क्योंकि उस सूची में जिनके नाम हैं उनको यह सरकार बचाना चाहती है। आदि आदि।अब तो मोदी की सरकार है। काले धन वालों की कोई सूची जगजाहिर क्यों नहीं की गई। क्या यह सरकार अपने लोगों को बचा रही है! कड़वी दवा पिलाने की जरूरत नहीं है। वर्ष 2014-15 के अंतरिम बजट में कॉरपोरेट जगत के लिए पांच लाख करोड़ से अधिक राशि का प्रावधान किया गया है। निश्चित राशि है 5.73 लाख करोड़। देश का वित्तीय घाटा इस राशि से बहुत कम है। संभवत: 5.25 लाख करोड़। कॉरपोरेट जगत के लिए अतिरिक्त कर-छूट के तौर पर अंतरिम बजट में जिस राशि का प्रावधान किया गया है उसको अगर समाप्त कर दिया जाता तो न केवल सरकार का वित्तीय घाटा खत्म हो जाता, बल्कि उसके पास पचास हजार करोड़ की अतिरिक्त राशि बच जाएगी। कॉरपोरेट जगत को दी गई कर-रियायत को समाप्त करने की स्थिति में सरकार को डीजल के दाम बढ़ाने की जरूरत नहीं होती। रसोई गैस, पेट्रोल, उर्वरक, खाद्य सामग्री पर जारी सबसिडी को कम करने के बारे में नहीं सोचना पड़ता (जिसे जनता की नाराजगी को देखते हुए तीन महीनों के लिए स्थगित कर दिया गया है) और पहले के सभी रिकार्ड ध्वस्त करते हुए रेल किराया और मालभाड़ा बढ़ाने की जरूरत न पड़ती। हम भूले नहीं हैं कि चुनाव नतीजे आने के बाद दिल्ली की एक सभा में जेटली ने रामदेव की तुलना महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण जैसे महापुरुषों से कर डाली। इससे जनता में यह संदेश गया कि मोदी सरकार आते ही विदेशी बैंकों में अपना काला धन जमा करने वाले तमाम लोगों की सूची जाहिर कर देगी और सारा काला धन भारत आ जाएगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। सूची की बात जाने दीजिए। बजट में काले धन की उगाही के संकेत भी नहीं हैं। चुनावों में बार-बार कहा गया कि देशहित में कठोर आर्थिक फैसले करने के बजाय यूपीए सरकार उन्हें टाल रही है। रेल के बढ़ाए गए किरायों में मुंबई की लोकल ट्रेनों के किरायों की बढ़ोतरी भी शामिल थी। महाराष्ट्र और खासकर मुंबई के संसद सदस्यों और भाजपा के नेताओं ने अडिग मोदी से मुलाकात की और उन्हें समझाया कि इस निर्णय का महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव पर विपरीत असर पड़ेगा। अपने निर्णय पर अडिग रहने वाले मोदी ने मुंबई की लोकल ट्रेनों के बढ़े हुए किरायों में कटौती की घोषणा कर दी। बजट में सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा के निर्माण के लिए दो सौ करोड़ का प्रावधान है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने केशूभाई पटेल के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने का संकल्प दोहराया था। मोदी ने कहा था कि हम गुजरात में देश के लाखों किसानों के दान से प्रतिमा बनाएंगे। अब देश के बजट में दो सौ करोड़ का प्रावधान किया गया है। इस संबंध में, मैं यह कहना चाहता हूं कि भारत के स्तर पर विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा सरदार पटेल की नहीं, बल्कि सरदार पटेल के आराध्य और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की बननी चाहिए। बजट में कृषि और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नए संस्थान खोलने पर जोर दिया गया है। नए संस्थान खोलने की अपेक्षा देश में पहले से स्थापित संस्थानों को बेहतर, आधुनिक और सुदृढ़ बनाने की कोशिश की जानी चाहिए। यह बहुत कुछ उसी प्रकार की हड़बड़ी है जैसी रेल की पटरियों को मजबूत, टिकाऊ और सुदृढ़ बनाने के स्थान पर बुलेट ट्रेन चलाने की घोषणा करना। रेलमंत्री ने अमदाबाद से मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की घोषणा की है, जिस पर बजट की लगभग चालीस प्रतिशत धनराशि के बराबर लागत आएगी। आम आदमी को चाहिए कि वह अपना पेट भर सके। अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ा सके। बीमार होने पर इलाज करा सके। बेरोजगार को नौकरी चाहिए। वित्तमंत्रीजी, आप बताइए कि इनके लिए आपके बजट में क्या है। वित्तमंत्री से उम्मीद थी कि वे बजट में जन-आकांक्षाओं का ध्यान रखेंगे। बजट से नई आशा और नए विश्वास का भाव पैदा होगा। मगर वित्तमंत्री ने क्या तस्वीर पेश की। आपने कहा कि अनिश्चितता की स्थिति है, इराक या खाड़ी का संकट है, मानसून कमजोर है। उनके बजटीय भाषण ने आशा और विश्वास पैदा करने के स्थान पर निराशा का वातावरण पैदा कर दिया। आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास। कॉरपोरेट घरानों को बजट में तमाम तरह की सुविधाएं देने के बावजूद शुरुआती चढ़ाव के बाद शेयर बाजार में गिरावट देखने को मिली।
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