रश्मि शर्मा जनसत्ता 16 जून, 2014 : बचपन में दादी से कई कहानियां सुनी थीं। दंत कथाएं, लोक कथाएं, खूबसूरत राजकुमारी, दूर देश से आया राजकुमार, सात भाइयों की प्यारी बहना जो भाभियों के अत्याचार सहती है और आखिरकार उसे भाई ही मुक्ति दिलाते हैं, अपनी पत्नियों को त्याग कर...! ऐसी अनेक कहानियां आज भी जेहन में हैं आधी-अधूरी...! उस दिन अपनी यायावरी प्रवृत्ति के कारण शहर से दूर निकल गई। बूढ़मू प्रखंड के ठाकुर गांव को पार करती जा रही थी। यह रांची से करीब तीस-पैंतीस किलोमीटर की दूरी पर है। एक जगह कतार से लगे मेरे पसंदीदा नीले गुलमोहर के पेड़ों ने मुझे विवश किया कि गाड़ी से उतरूं और कुछ तस्वीरें कैमरे में कैद कर लूं। सामने एक खूबसूरत पहाड़ी थी। मैं तस्वीरें ले रही थी कि मेरा बेटा और नन्हा साथी अभिरूप पहाड़ देख कर मचलने लगा ऊपर जाने के लिए। इस बीच दो महिलाएं आर्इं। मुझे देख कर रुक गर्इं और कहा कि उस पहाड़ की तस्वीर ले रही हैं तो वहां जाइए जहां तीर के निशान बने हैं! वहां से अब भी खून निकलता है, अगर उसकी खुदाई की जाए! मेरे मन में उत्सुकता जागी। कुछ उनसे पूछा तो कुछ वहां के स्थानीय लोगों से पता किया। उसके बाद एक कहानी सामने आई। बिल्कुल दादी की सुनाई गई कहानियों की तरह। सात भाइयों की इकलौती बहन थी। बहन बड़े-प्यार से खाना बनाती थी अपने भाइयों के लिए। एक दिन जब वह साग बना रही थी तो उसकी अंगुली कट गई और साग में उसका खून मिल गया। भाइयों को जब खाना दिया उसने तो उन्हें दूसरे दिनों की अपेक्षा खाना ज्यादा स्वादिष्ट लगा। वे बहन से पूछने लगे कि क्या मिलाया है आज खाने में। बहन ने कहा कि जो रोज बनता है वैसे ही बना है। मगर भाई नहीं माने और उनकी लगातार जिद पर उसे बताना पड़ा कि साग में उसका खून भी मिला है। भाइयों ने सोचा कि जब खून की कुछ बूंदें मिलने से खाना इतना स्वादिष्ट हो सकता है तो बहन का मांस कितना स्वादिष्ट होगा। तब सब भाइयों ने योजना बनाई और बिंदू पहाड़ पर अपने-अपने तीर घिस कर तेज किए और दूर एक मचान बना कर बैठ गए। फिर सांझ के धुंधलके में बहन पानी लाने जा रही थी तो उसे निशाना बना कर तीर मारा। जब वह मर गई तो उसका मांस पका कर खाया और हड्डियों को मचान के बगल में जमीन में गाड़ दिया। लोगों का मानना है कि वहीं बांस उग आए और बिंदू पहाड़ पर जिस जगह सातों भाइयों ने अपने तीर तेज किए थे, उसका निशान आज भी बरकरार है; जब कोई उस जगह को थोड़ा गहरा खोदता है तो आज भी उसमें से खून निकल आता है।
यह कहानी कितनी पुरानी है, किसी को पता नहीं। मगर पहाड़ पर तीर पजाने, यानी तेज करने के सात निशान और बांस का झुरमुट है, जो एक दंतकथा के सत्य-सा होने का संकेत करते हैं।शायद इस कहानी को कुछ वक्त ने और कुछ बात छिपाने के लिए तत्कालीन ग्रामवासियों ने अलग रूप दे दिया। मुझे लगता है कि यह उस जमाने में भी झूठी इज्जत के नाम पर हत्या का मामला था। कुछ अनुभवी बुजुर्गों ने बताया कि दरअसल उस लड़की को एक लड़के से प्यार हो गया था। भाइयों की इज्जत पर बन आई। बहन को पहले समझाया, लड़के को भी डराया। मगर प्रेम में डूबे युवा नहीं माने। आखिरकार भाइयों ने तीर चला कर उन दोनों को मार डाला। बाद में यह बात दंतकथा के रूप में प्रचलित हो गई कि स्वादिष्ट मांस के लालच में भाइयों ने बहन को मार डाला। यह सच है कि स्त्रियां हमेशा से ही प्रताड़ित होती आई हैं। कभी समाज के नाम पर तो कभी प्रतिष्ठा के नाम पर उनकी जान ली जाती रही है, चाहे वह पुरातन काल हो या आधुनिक काल। यह अलग बात है कि पहले इस तरह की घटनाएं अगर कभी होती थीं तो उन्हें किस्सों में बदल दिया जाता था। आज भी ऐसे बहुत सारे मामले महज घटनाओं के रूप में सामने आते हैं और पुलिस फाइलों में दम तोड़ देते हैं। इससे ज्यादा अफसोसनाक और क्या होगा कि आधुनिकता के पायदान पर लगातार ऊपर की ओर चढ़ते जाने के बावजूद हम झूठी इज्जत के नाम पर होने वाली हत्याओं को समाज से खत्म नहीं कर पा रहे। क्या प्रेम इस हद तक वर्जित है? अगर नहीं तो किसी बालिग को अपनी मर्जी से जीवन जीने की आजादी क्यों नहीं है? प्राण जाए, मगर समाज में प्रेम के कारण ‘पगड़ी’ नीची नहीं होनी चाहिए! इसके बरक्स चाहे जितने अत्याचार, अपराध या कुकर्म होते रहें, उनकी अनदेखी की जा सकती है! इस पाखंड के साथ हम किस मंजिल के सफर में हैं!
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