Sunday, 01 December 2013 09:19 |
अनिल बंसल
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में निजी चीनी मिल मालिकों की हठधर्मिता से गन्ना किसान बेहद परेशान हैं। राज्य सरकार से किसानों को मदद की उम्मीद नजर नहीं आ रही।
दिखावे के लिए ही सही पर राज्य सरकार ने निजी चीनी मिल मालिकों को धमकी दी है कि उन्होंने अगले हफ्ते से गन्ने की पेराई शुरू नहीं की, तो सरकार उनसे कड़ाई से निपटेगी। मगर ज्यादातर गन्ना किसान इसे अखिलेश सरकार का ढोंग बता रहे हैं। हताश किसान अब मायावती का गुणगान कर रहे हैं। जिनके राज में न केवल किसानों को गन्ने का उचित दाम मिला था बल्कि मिलों ने गन्ने की पेराई भी दीपावली के आसपास शुरू कर दी थी।
उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती किसानों की आमदनी का बड़ा जरिया है। लेकिन जब से राज्य में अखिलेश यादव की सरकार बनी है, निजी क्षेत्र के चीनी मिल मालिक बेखौफ हो गए हैं। समाजवादी पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में किसानों को गन्ने का लाभकारी मूल्य दिलाने का वादा किया था। पिछले साल सरकार ने गन्ने के दाम में 20 रुपए क्विंटल की बढ़ोतरी भी कर दी थी पर चीनी मिलों ने किसानों को पिछले सीजन के गन्ने का अभी तक भुगतान ही नहीं किया। नतीजन पिछले साल का 25 अरब रुपए अभी बकाया हैं।
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने शुक्रवार को सरकार की तरफ से चीनी मिल मालिकों को चेतावनी दी। मगर मिल मालिक टस से मस होने को तैयार नहीं हैं। उनके दबाव में राज्य सरकार ने इस साल गन्ने के दाम में कोई बढ़ोतरी नहीं की। मिल मालिक अभी भी जिद पकड़े हैं। वे केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से विशेष आर्थिक पैकेज की मांग कर रहे हैं। अपनी मांग पूरी न होने तक मिलों में पेराई शुरू नहीं करने का एलान भी कर चुके हैं। इस चक्कर में सूबे के 60 लाख गन्ना किसानों में असंतोष भड़क रहा है। जगह-जगह किसान धरने, प्रदर्शन
और मिलों के बाहर तोड़-फोड़ कर रहे हैं लेकिन राज्य सरकार मौन है।
दरअसल, किसानों की परेशानी की वजह दूसरी है। उन्हें गन्ना मिलों को बेच कर अपने खेत खाली करने की जल्दी है। मकसद गेहूं की बुआई करना है। बुआई में देरी होने से न केवल पूरा फसल चक्र गड़बड़ा जाएगा बल्कि गेहूं की पछेती फसल के कारण पैदावार भी घटेगी। जिससे देश में अनाज का संकट पैदा हो सकता है। आम तौर पर चीनी मिलें दशहरे से लेकर दीपावली तक गन्ने की पेराई जरूर शुरू कर देती हैं। इससे किसान दिसंबर में खेतों को तैयार कर गेहूं की बुआई कर लेते हैं। मगर इस बार मिलें नहीं चलने से उन्हें मजबूरी में आधे दाम पर अपने गन्ने को गुड़ बनाने वाले कोल्हू मालिकों के हाथों बेचना पड़ रहा है। कई जगह तो गन्ना किसान आर्थिक तंगी के चलते खुदकुशी या फिर इसकी कोशिश भी कर चुके हैं।
किसानों का कहना है कि मुलायम सिंह यादव खुद को धरतीपुत्र और किसानों का हितैषी बताते रहे हैं। जबकि मायावती ने ऐसा दावा कभी नहीं किया। तो भी गन्ना किसानों के लिए मायावती का राज बेहतर था। मायावती के खौफ के कारण चीनी मिल मालिक किसानों का गन्ना तो समय पर खरीद ही रहे थे, उनके भुगतान में भी देरी नहीं कर रहे थे। इसके उलट अखिलेश यादव जगह-जगह किसानों को चीनी मिल मालिकों की समस्याओं का वास्ता देकर चुप रहने की सलाह दे रहे हैं। लगता है कि वे किसानों के बजाय मिल मालिकों के हमदर्द बन गए हैं।
यह सही है कि पिछले कुछ महीनों से चीनी की घरेलू कीमतें नीचे रही हैं जिससे मिल मालिक घाटा होने का रोना रो रहे हैं पर पेराई में देरी करना कहीं न कहीं सरकार की काहिली और मिलीभगत का ही नतीजा लगता है।
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