प्रभाकर मणि तिवारी
कोलकाता। पूर्वोत्तर भारत में बसे पर्वतीय राज्य मिजोरम की चुनावी तस्वीर सबसे अनूठी और दिलचस्प है।
भले ही मुख्यधारा की मीडिया में उसे खास तवज्जो नहीं मिल रही हो, वहां का चुनावी मॉडल एकदम आदर्श है। चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का, राज्य में कहीं भी ज्यादा बैनर और पोस्टर नहीं नजर आते। इस बार के विधानसभा चुनाव भी अपवाद नहीं हैं। चर्च चुनावी भ्रष्टाचार पर कड़ी निगाह रखता है। चर्च का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन के बैनर तले ही तमाम राजनीतिक दलों की रैलियों का आयोजन किया जाता है। किसी भी चुनाव से पहले चर्च पार्टियों और उम्मीदवारों के लिए आचार संहिता तय कर देता है। यही वजह है कि राज्य में आचार संहिता के उल्लंघन के मामले नहीं के बराबर होते हैं। यहां 25 नवंबर को मतदान होने हैं।
राज्य में चुनाव आयोग से ज्यादा असर मिजोरम पीपुल्स फोरम (एमपीएफ) का है। यह राज्य के सबसे बड़े चर्च संगठन सीनॉड का प्रतिनिधि है। हर बार की तरह इस बार भी एमपीएफ ने उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के लिए 27 नियम बनाए हैं। फोरम ने चेतावनी दी है कि अगर कोई राजनीतिक दल इन 27 में से किसी भी नियम का उल्लंघन करता है तो उसे अवैध घोषित किया जा सकता है। चुनाव आयोग भी एमपीएफ के दिशानिर्देशों का समर्थन करता है।
मिजोरम के मुख्य चुनाव अधिकारी अश्विनी कुमार कहते हैं कि हमारा और एमपीएफ का मकसद समान है। वह है मुक्तऔर निष्पक्ष चुनावों का आयोजन। राज्य में कौन सी राजनीतिक पार्टी कब और कहां चुनावी रैली करेगी, यह फैसला भी एमपीएफ ही करता है। संगठन ने उम्मीदवारों के घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करने, सामुदायिक दावतों के आयोजन और प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों के चरित्र पर अंगुली उठाने पर भी रोक लगा दी है।
राजनीतिक विश्लेषक वानलालुरेट कहते हैं कि यहां चुनावी मौहाल देश के दूसरे हिस्सों से अलग होता है। राजधानी आइजल में भी ज्यादा शोरगुल नहीं दिखाई देता। कुछ लोगों को लगता है कि मिजोरम के चुनावी मॉडल को देश के दूसरे हिस्सों में लागू कर चुनाव खर्च को काफी कम किया जा सकता है। लेकिन आइजल के पाछूंगा यूनिवर्सिटी कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर लालथालमुआना को नहीं लगता कि यह मॉडल दूसरे हिस्सों में प्रभावी होगा। वे कहते हैं कि किसी तटस्थ संगठन की देख-रेख में चलने वाले चुनाव अभियान का फायदा यह है कि मतदाताओं में पैसे बांटने के मामले सुनने को नहीं मिलते। लेकिन यह मॉडल दूसरे राज्यों में काम नहीं करेगा। वे कहते हैं कि राजनीति में धार्मिक संगठनों के हस्तेक्षप को दूसरे राज्यों में कोई भी राजनीतिक पार्टी स्वीकार नहीं करेगी।
राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी को उम्मीद है कि अबकी इन चुनावों में होने वाला मतदान पड़ोसी त्रिपुरा के 90 फीसद मतदान का रिकार्ड तोड़ देगा। उनका कहना है कि राज्य का चुनावी माहौल देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले अलग है। यहां आचार संहिता के उल्लंघन के इक्का-दुक्का मामले ही होते हैं। मिजोरम में 1995 से ही शराबबंदी लागू
है। लेकिन हर चुनाव में यहां शराब भी एक प्रमुख मुद्दा बनती रही है। उम्मीदवारों पर वोटरों को लुभाने के लिए शराब बांटने के आरोप लगते रहे हैं। शराबबंदी लागू होने के बाद पड़ोसी असम से चोरी-छिपे पहुंचने वाली शराब कई गुनी ऊंची कीमत पर बिकती है।
मिजोरम में सत्तारुढ़ कांग्रेस राज्य में दोबारा सत्ता में आने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है तो तीन पार्टियों का गठजोड़ अबकी उसे हटा कर सत्ता पर कब्जा जमाने का प्रयास कर रहा है। कांग्रेस सरकार के अगुवा ललथनहवला अपनी सरकार के कामकाज के सहारे वोट मांग रहे हैं तो मिजोरम नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), मिजोरम पीपुल्स कांफ्रेंस और मारालैंड डेमोक्रेटिक फ्रंट वाला मिजोरम डेमोक्रेटिक एलायंस स्थानीय मुद्दों को अपने एजंडे में जगह देकर वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही है। मिजोरम के मध्य में स्थित सरचिप विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री पीयू ललथनहवला एक बार फिर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस बार उनको विपक्षी मिजोरम डेमोक्रेटिक एलायंस (एमडीए) के उम्मीदवार सी लालरमजउवा से कड़ी टक्कर मिल रही है। ललथनहवला इस सीट से छह बार चुनाव जीत चुके हैं।
मिजोरम देश का अकेला ऐसा राज्य है जहां मतदाता सूची में भी महिलाओं की तादाद पुरुषों के मुकाबले ज्यादा है। राज्य के लगभग 6.86 लाख वोटरों में से 3.49 लाख महिलाएं हैं और 3.36 लाख पुरुष। राज्य में सरकारी नौकरियों में लगभग 47 हजार महिलाएं हैं। यानी कुल कमर्चारियों का 35-40 फीसद। मतदाता सूची में पुरुषों पर भारी होने के बावजूद मिजोरम की राजनीति में महिलाएं बेचारी ही हैं। मिजोरम और देश के दूसरे राज्यों में भले कई असमानताएं हों, एक चीज में वह बाकी राज्यों के बराबर है। वह यह कि दूसरे राज्यों की तरह यहां भी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय तमाम राजनीतिक दल महिलाओं को टिकट देने में बेहद कंजूसी बरतते हैं। यह हालत तब है जब सामाजिक जनजीवन में महिलाओं की भूमिका काफी अहम है। अबकी विधानसभा की 40 सीटों के लिए मैदान में उतरे 142 उम्मीदवारों में महज चार महिलाएं हैं। बीते विधानसभा चुनावों में छह महिला उम्मीदवार मैदान में उतरी थी, लेकिन उनमें से कोई भी नहीं जीत सकी। पिछले 25 साल में कोई भी महिला उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सकी है।
देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले इस पर्वतीय राज्य के उम्मीदवारों की प्रोफाइल बेहतर है। मिजोरम विधानसभा की 40 सीटों के लिए मैदान में उतरे 142 उम्मीदवारों में आधे से अधिक करोड़पति हैं। नेशनल इलेक्शन वाच की ओर से जारी आंकड़े के मुताबिक 142 उम्मीदवारों में 75 (53 फीसदी) करोड़पति हैं। उनमें से हर उम्मीदवारों के पास औसतन 2.31 करोड़ रुपए की संपत्ति है। इनमें 68 फीसद उम्मीदवार ग्रेजुएट हैं। सबसे अहम बात यह है कि सिर्फ तीन उम्मीदवारों के खिलाफ ही आपराधिक मामले दर्ज हैं। ऐसे में मिजोरम मॉडल पूरे देश के लिए एक आदर्श साबित हो सकता है।
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