Monday, 18 November 2013 09:17 |
अंबरीश कुमार
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कई दिग्गज मैदान छोड़ सकते हैं। कांग्रेस के कद्दावर नेता डाक्टर संजय सिंह तो मैदान ही नहीं पार्टी छोड़ने की कवायद में जुटे हैं। सांसद अजहरुद्दीन उन सांसदों में पहले नंबर पर हैं जो अपने निर्वाचन क्षेत्र मुरादाबाद से दोबारा चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। अगर लड़े तो हार तय है।
इसी तरह बहराइच के सांसद कमल किशोर कमांडो अब बांसगांव से लड़ना चाहते हैं। फिरोजाबाद से सांसद राज बब्बर भी अपनी सीट बदलना चाहते हैं। पार्टी भी उन्हें लखनऊ से चुनाव लड़ा दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। गोण्डा से बेनी बाबू के लिए भी इस बार रास्ता आसान नहीं है। वे अब अपने क्षेत्र की लगातार सुध ले रहे हैं।
यह बानगी है उस पार्टी की जो मोदी को चुनौती दे रही है और मुसलिम वोटों की सबसे बड़ी दावेदार है। लेकिन मुरादाबाद से लेकर बहराइच जैसे मुसलिम बहुल इलाके में ही इनकी हालत ज्यादा पतली है। कांग्रेसी आगामी विधानसभा चुनाव का गणित बताते हुए पिछले लोकसभा चुनाव का तो जिक्र करते हैं पर पिछले साल के विधानसभा चुनाव के नतीजों का हवाला नहीं देते। वे इसे राष्ट्रीय चुनाव बता देते हंै जबकि विधानसभा चुनाव में इनके सभी राष्ट्रीय नेता ही प्रचार में जुटे थे।
सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सलमान खुर्शीद, राज बब्बर, दिग्विजय सिंह से लेकर सिने कलाकार तक इसमें शामिल थे। बावजूद इसके सोनिया और राहुल के गढ़ में ही कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। अब हालात तो बदले हैं पर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की जो स्थिति है वह उत्तर प्रदेश में नहीं है। दरअसल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास जनाधार वाला एक भी नेता नहीं है जिसकी अपील समूचे प्रदेश में हो। सीबी गुप्ता, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, वीर बहादुर सिंह से लेकर वीपी सिंह जैसे कद का आज कोई भी नेता प्रदेश में नहीं है। यही कांग्रेस की असली समस्या भी है। कांग्रेस ने भी नए नेताओं को वह ताकत नहीं दी जो अपेक्षित थी। इस कारण मजबूत नेतृत्व नहीं उभरा। मंडल और मंदिर के साथ दलित आंदोलन के उदय के बाद कांग्रेस का जनाधार भी खत्म हो गया। अब कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में अपने पुराने एजंडे पर लौट रही है।
राहुल गांधी की छवि अन्य नेताओं के मुकाबले सबसे अलग है। उन्होंने कांग्रेस को मजबूत करने की कड़ी कवायद की है। लेकिन जातीय गोलबंदी को वे तोड़ नहीं पाए। इसी वजह से कांग्रेस किसी लहर में ज्यादा सीट पा भी जाए तो उसे संभाले रख पाना मुश्किल होता है।
पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह ने हिंदुत्व के प्रतीक कल्याण सिंह से हाथ मिलाया जिसका बड़ा फायदा कांग्रेस को मिला था। लेकिन यह मुसलमानों की नाराजगी का वोट था जो फिर समीकरण बदलते ही समाजवादी पार्टी के पास विधानसभा चुनाव में लौट गया। अब कांग्रेस उस वोट को हासिल करने के लिए ही सारी जद्दोजहद कर रही है।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीस मुसलिम उम्मीदवार चुनाव में उतारे थे लेकिन जीता सिर्फ एक। इससे मुसलिम बिरादरी में कांग्रेस की पैठ का अंदाजा लगाया जा सकता है। अब पार्टी मोदी और मुजफ्फरनगर के नाम पर मुसलिम वोटों की अपेक्षा कर रही है। लेकिन मुसलिम वोट पिछले लोकसभा चुनाव की तरह पड़ेंगे यह तय नहीं है। यही वजह है कि दिग्गज कांग्रेसी मैदान छोड़ रहे हैं। इनमें डाक्टर संजय सिंह पुराने बागी हैं जिन्हें केंद्र में मंत्री नहीं बनाया गया था तबसे वे अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, वे समाजवादी पार्टी में भी जाना चाहते थे और भाजपा में भी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह राष्ट्रीय स्तर पर नए राजपूत नेता के रूप में उभर रहे हैं इसलिए वे राजपूत क्षत्रपों को साथ लेना चाहते हैं। राजा भैया से लेकर संजय सिंह तक इसमें शामिल थे। सपा ने राजा भैया को मंत्री बनाकर उन्हें जोड़े रखा। लेकिन कांग्रेस का रुख ऐसा नहीं है। इसलिए संजय सिंह बगावत पर आमादा हैं। इसके पीछे वोटों का वह गणित भी है जिसमें हार हो सकती है। विधानसभा चुनाव में रानी हार भी चुकी है।
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