Wednesday, 13 November 2013 09:26 |
जनसत्ता ब्यूरो
नई दिल्ली। केंद्रीय जांच ब्यूरो को
नीति निर्माण और जांच के बीच की विभाजन रेखा का सम्मान करने की नसीहत देते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम मंगलवार को जांच एजंसियों और सीएजी पर बुरी तरह बरसे और कहा कि वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करें। उन्होंने कहा कि इन प्राधिकारों ने वैधानिक शासकीय फैसलों को या तो अपराध या अधिकार के दुरुपयोग में बदलने की कोशिश की है।
नीतिगत मामलों में सीबीआइ को सावधानी से काम करने की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सलाह के एक दिन बाद मंगलवार को एजंसी के कामकाज पर वित्त मंत्री ने अपने विचार रखे। सीबीआइ के स्वर्ण जयंती समारोह में ‘वित्तीय अपराधों से निपटने के लिए आपराधिक न्याय व्यवस्था का निर्माण’ विषय पर वित्त मंत्री ने कहा कि दुर्भाग्यवश कई ऐसे मामले हैं, जहां जांच एजंसियां और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक जैसे दूसरे प्राधिकारों ने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण किया है और वैधानिक शासकीय फैसलों को या तो अपराध या अधिकार के दुरुपयोग में बदलने की कोशिश की है।
चिदंबरम ने जांच एजंसी को चेताया कि वह नीति निर्माण और नियंत्रण के बीच की विभाजन रेखा का सम्मान करे। वित्तीय अपराधों में लोक सेवकों की भूमिका का जिक्र करते हुए वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि जांच एजंसी को खुद को केवल इस सवाल तक सीमित रखना चाहिए कि क्या आचार-व्यवहार के किसी स्थापित नियम का उल्लंघन हुआ है? वित्त मंत्री ने कहा कि यह जांच एजंसी का काम नहीं है कि वह आचार व्यवहार के नियम बनाए या वह आचार व्यवहार के किसी नियम की परिकल्पना करे। उन्होंने कहा- यहां तक कि जहां नियम सुझाया गया है और उस नियम के पीछे कोई नीति
है तो ऐसे में नीति के विवेक पर सवाल उठाना या उसकी अपनी नजर में सही लगने वाली कोई अलग नीति सुझाना जांच एजंसी का काम नहीं है।
उन्होंने कहा कि जांच एजंसियों को इस नतीजे पर पहुंचने से पहले सावधानीपूर्वक काम करना चाहिए कि उपलब्ध तथ्यों के आधार पर किया गया कोई फैसला या काम अपराध की श्रेणी में आता है। उन्होंने कहा कि यहीं पर दिमाग लगाना पड़ता है। मेरे विचार से, यदि जांच एजंसी अपने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करती है, आपराधिक मकसद या मंशा का पता नहीं चलता है और सीधे नतीजे पर पहुंचती है कि कोई फैसला या कार्रवाई आपराधिक श्रेणी की है तो यह सामान्य समझ के पूरी तरह खिलाफ होगा।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने हाल ही में स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लाकों के आबंटन में सरकार की ओर से अपनाई गई नीतियों पर सवाल उठाया था। दोनों ही मामलों की जांच सीबीआइ कर रही है। सीबीआइ को ‘पिंजरे में बंद तोता’ बताए जाने का जिक्र करते हुए चिदंबरम ने कहा कि जांच एजंसी के बारे में कई तरह की भ्रांतियां हैं जिनमें उसे ‘पिंजरे में बंद पक्षी’ से लेकर अपमानजनक भाषा में ‘कांग्रेस ब्यूरो आफ इंवेस्टिगेशन’ तक बताया गया है। उन्होंने कहा कि इसमें से कोई भी व्याख्या सही नहीं है या इनका अर्थ तक सही नहीं है। कुछ भ्रांतियां सावधानीपूर्वक गढ़ी गई हैं और इनका मकसद संकीर्ण निहित स्वार्थ हैं।
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