Wednesday, 16 October 2013 09:32 |
जनसत्ता ब्यूरो नई दिल्ली। सामाजिक कल्याण की योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता के बारे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के बाद अब भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण भी शीर्ष अदालत पहुंच गया है।
प्राधिकरण का तर्क है कि उसके निर्देश का कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने पर बहुत ही गंभीर असर पड़ेगा। अदालत ने कहा था कि इन योजनाओं का लाभ हासिल करने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ने दलील दी है कि 23 सितंबर के अदालत के आदेश में यह जिम्मेदारी उस पर डाल दी गई है कि आधार कार्ड गैरकानूनी अप्रवासियों को नहीं दिए जाएं। प्राधिकरण का तर्क है कि इस आदेश से उस प्राधिकारण के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण होता है जिसकी नागरिकता की पुष्टि करने की जिम्मेदारी है। शीर्ष अदालत में दाखिल अर्जी में प्राधिकरण ने कहा है कि आधार कार्ड पहचान का सबूत है और नागरिकता की पुष्टि करने व गैरकानूनी अप्रवासियों को खोजने की जिम्मेदारी दूसरी एजंसियों की है। अर्जी के अनुसार सरकार के नीतिगत निर्णय के तहत प्राधिकरण को भारत के निवासियों को आधार मुहैया कराने का काम सौंपा गया है। आधार कार्ड पहचान का सबूत है न कि नागरिकता का। यह उल्लेख किया जा सकता है कि सरकार ने नागरिकता की पुष्टि और गैरकानूनी अप्रवासियों का पता लगाने की जिम्मेदारी विनिर्दिष्ट एजंसियों को सौंप रखी है। अर्जी में शीर्ष अदालत से अंतरिम आदेश में सुधार का अनुरोध किया गया है। अर्जी के अनुसार अंतरिम आदेश में प्राधिकरण को आधार के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति की नागरिकता की स्थिति की जांच करने और गैरकानूनी अप्रवासियों की पहचान करने संबंधी निर्देश कानून के तहत उचित प्राधिकारियों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है जिन्हें इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है। प्राधिकरण का कहना है कि आधार के लिए पंजीकरण हेतु पुष्टि का ठोस तरीका है और ऐसा कोई सबूत नहीं है कि इस तरह से व्यवस्था में गैरकानूनी अप्रवासियों के प्रवेश का रास्ता
खुल गया है। प्राधिकरण ने कहा है कि 53 करोड़ से अधिक निवासियों का पंजीकरण किया जा चुका है। अर्जी में कहा गया है कि अपवाद और इक्का-दुक्का ऐसी घटनाएं सरकार की योजनाओं और अपेक्षित जन नीति के लिए स्पष्ट रूप से किए गए प्रशासनिक उपायों को कमतर आंकने या उनके बारे में संदेह करने का कारण नहीं हो सकती हैं। शीर्ष अदालत ने 23 सितंबर को कहा था कि कुछ प्राधिकरणों द्वारा आधार कार्ड अनिवार्य बनाए जाने के परिपत्र के कारण कोई भी व्यक्ति प्रभावित नहीं होना चाहिए। लिहाजा जब भी कोई व्यक्ति स्वेच्छा से आधार कार्ड के लिए आवेदन करता है तो इस तथ्य की जांच की जानी चाहिए कि कानून के तहत क्या वह इसके लिए हकदार है और किसी भी गैरकानूनी अप्रवासी को यह नहीं दिया जाना चाहिए। अदालत ने हाई कोर्ट के रिटायर न्यायादीश के पुत्तास्वामी की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह अंतरिम आदेश दिया था। न्यायमूर्ति पुत्तास्वामी चाहते थे कि 28 जनवरी 2009 के कार्यकारी आदेश के जरिए आधार कार्ड जारी करने से केंद्र, योजना आयोग और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को रोका जाए। आधार कार्ड के अनेक लाभों का जिक्र करते हुए प्राधिकरण ने कहा है कि गरीबों को ध्यान में रखते हुए प्राधिकरण ने भारत के निर्धन और गरीब तबके को पंजीकृत करने का लक्ष्य बनाया है। इनमें से अधिकांश के लिए आधार पहचान का पहला रूप हो सकता है। लेकिन सत्यापन की निर्धारित प्रक्रिया के बगैर किसी का भी आधार के लिए पंजीकरण नहीं होता है। प्राधिकरण ने कहा है कि 30 सितंबर तक 53 करोड़ से अधिक निवासियों का आधार के लिए पंजीकरण हो चुका है और केंद्र ने 3494 करोड़ रुपए इस पर खर्च किए हैं। जबकि तेल विपणन कंपनियों ने आधार नंबर के आधार पर करीब 45 हजार डुप्लीकेट एलपीजी कनेक्शन का पता लगाया है। जिससे करीब 23 करोड़ रुपए सालाना की बचत होगी।
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