Wednesday, 09 October 2013 08:57 |
विवेक सक्सेना नई दिल्ली। बसपा के साथ आगामी लोकसभा चुनाव में तालमेल की संभावनाओं पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने विराम लगा दिया है।
उन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती पर उत्तर प्रदेश में किसी अनुसूचित जाति के नेता को आगे नहीं बढ़ने देने का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने दलित नेतृत्व पर कब्जा कर रखा है। इस समुदाय में नेतृत्व को उभारने के लिए कांग्रेस के पास बहुत बड़ा अवसर है। अनुसूचित जाति सशक्तीकरण के लिए राष्ट्रीय जागरूकता पर यहां आयोजित एक कार्यक्रम में राहुल गांधी ने कहा कि भारत में दलित सशक्तीकरण चरणों में हुआ है। पहले चरण में भीमराव आंबेडकर शामिल थे जिन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर संविधान लिखने और उनके लिए आरक्षण सुनिश्चित करने में योगदान दिया। उन्होंने कहा कि दूसरा चरण कांशीराम का था जिन्होंने सशक्तीकरण का इस्तेमाल आरक्षण से संगठन के निर्माण के लिए किया। इस चरण में मायावती ने भूमिका निभाई। कांग्रेस नेता ने कहा कि देश तीसरे चरण से गुजर रहा है जहां सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है नेतृत्व का विकास। राहुल ने कहा कि अगर आप इस (दलित) आंदोलन को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो एक दलित नेता या दो दलित देना पर्याप्त नहीं होंगे। लाखों दलित नेताओं की जरूरत होगी। आंदोलन के नेतृत्व पर मायावती ने कब्जा कर रखा है वह दूसरों को आगे बढ़ने नहीं देतीं। उनके इस बयान ने इन अटकलों पर विराम लगा दिया है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बसपा के साथ हाथ मिला सकती है। इससे पहले चर्चा थी कि कांग्रेस अपनी मौजूदा लोकसभा सीटों के अलावा सभी दूसरी सीटें बसपा के लिए छोड़ सकती है। कांग्रेस की हालत अच्छी नहीं हैं। पिछले साल हुए विधान सभा चुनाव में सोनिया गांधी व राहुल गांधी के लोकसभा चुनाव क्षेत्र में आने वाली 10 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के उम्मीदवार नौ पर हार गए थे। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 21 सीटें मिलने में मुसलिम मतदाता का बहुत बड़ा योगदान रहा था जो कि कल्याण सिंह से हाथ मिलाने के कारण मुलायम सिंह यादव से नाराज हो गया था। उसने अपनी नाराजगी जताने के लिए सपा का साथ छोड़ दिया था व कांग्रेस के जीत सकने योग्य उम्मीदवारों को अपना वोट दिया। पिछले विधानसभा नतीजों ने सारा समीकरण ही बदल कर रख दिया। अब यह साफ है कि अगर सपा राहुल व सोनिया गांधी के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े कर देती
है तो उनको कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ सकता है। राहुल गांधी के इस बयान से पार्टी के वरिष्ठ नेता हतप्रभ हैं। वे यह समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या उन्होंने प्रदेश में पार्टी को अपने बलबूते पर चुनाव लड़वाने का मन बना लिया है। क्योंकि मुलायम सिंह यादव के साथ भी अब कांग्रेस के संबंध मधुर नहीं रहे हैं। देश की संसद में सबसे ज्यादा-80 सांसद भेजने वाले इस राज्य पर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की नजरें भी लगी हुई हैं। हाल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सांप्रदायिक दंगों के बाद अल्पसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण तय माना जा रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने दावा किया कि पार्टी के लिए यह बड़ा अवसर है जिसने दलितों के लिए अतीत में बहुत कुछ किया है। उन्होंने पार्टी से व्यवस्थित ढंग से हर स्तर पर - पंचायत से लेकर विधायक और सांसद तक और यहां तक कि नीति निर्धारण के स्तर तक, दलित नेतृत्व तैयार करने को कहा। राहुल ने कहा कि दलित शुरुआत से कांग्रेस के साथ थे लेकिन मंडल मंदिर आंदोलन के मद्देनजर बसपा ने उन्हें अपने पाले में कर लिया। पार्टी यह मानती है कि उन्हें उनके मूल घर में वापस लाने के प्रयास किए जाने चाहिए। बाल्मीकि जयंती के मौके पर आयोजित एक अन्य कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए राहुल ने हाल के अध्यादेश विवाद की चर्चा की और कहा कि मुझे एक पत्रकार ने बताया कि विपक्ष ऐसा कह रहा है कि अपनी बात रखने के लिए आपने गलत समय चुना। मैंने पूछा क्या सच कहने के लिए कोई सही समय होता है। कांग्रेस नेता ने कहा कि संसद में पास कुछ विधेयकों का नामकरण ठीक से नहीं होता । उन्होंने कहा कि हाल में मैला ढोने की प्रथा से संबंधित विधेयक पास हुआ। कायदे से इसका नाम आत्मसम्मान का अधिकार विधेयक होना चाहिए था। राहुल गांधी ने पार्टी के लिए हर राज्य में नेताओं को तैयार करने की आवश्यकता को रेखांकित किया ताकि लोग कह सकें कि कांग्रेस के पास 40 से 50 नेता हैं जो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में काम कर सकते हैं।
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