Wednesday, 24 July 2013 11:59 |
वाशिंगटन। भाजपा ने अमेरिका को तालिबान के साथ शांति वार्ता को लेकर सचेत करते हुए कहा कि इस आतंकी संगठन का व्यवहार बदलने की उम्मीद नहीं है और ऐसे में सुलह की यह प्रयास बेकार ही साबित होगी।
भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के कल यहां कहा, ‘‘अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक नेतृत्व को कमजोर करने के इरादे से इसे दोबारा ‘इस्लामिक अमीरात’ का दर्जा दिलाने के इच्छुक तत्वों के साथ वार्ता को लेकर उत्सुकता इस क्षेत्र के लिए उपयुक्त नहीं होगा।’’ राजनाथ कैपिटल हिल में ‘फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायसपोरा स्ट्डीज’, ‘यूएस इंडिया पॉलिटिकल एक्शन कमेटी’ और ‘अमेरिकन फॉरेन पॉलिसी काउंसिल’ की ओर से अफगानिस्तान पर संयुक्त रूप से आयोजित एक सम्मेलन में बोल रहे थे। सिंह ने कहा, ‘‘पाकिस्तानी सेना की मदद से अगर तालिबान के साथ यह वार्ता आगे बढ़ाई जाती है, जैसे की यह प्रतीत होता है तो हालात और भी खतरनाक हो जाएंगे। ऐसे में कई लोग कहेंगे कि अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में लेने की यह पाकिस्तानी सेना की रणनीतिक महत्वकांक्षा है, जो कि वहां के टकराव की मूल वजह है।’’ भाजपा अध्यक्ष ने सचेत किया कि वर्तमान प्रजातांत्रिक व्यवस्था की जगह अधिनायकवादी और सांप्रदायिक तालिबानी शासन लाने का कोई भी प्रयास न सिर्फ अफगानिस्तान के लोगों और उसके पड़ोसियों बल्कि भारत, रूस, चीन और यहां तक कि अमेरिका के लिए भी नुकसानदेह साबित होगा। उन्होंने कहा, ‘‘पूरी दुनिया का ही यह अनुभव रहा है कि आतंकवाद की कोई सीमा नहीं होती।’’ अंग्रेजी में भाषण दे रहे सिंह ने कहा कि भारत-पाकिस्तान के बीच की वहां प्रतिद्वंद्विता को एक बार फिर से अफगान संघर्ष का असली कारण बताने की कोशिश की जा रही है, जो अफसोसनाक बात है। सिंह ने कहा, ‘‘यह तथ्यों का मजाक बनाना है। तालिबान का निर्माण, अफगानिस्तान पर इसका कब्जा करना, तालिबान-अल कायदा का गठगोड़, वहां ओसामा बिन लादेन की मौजूदगी, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला के तार अफगानिस्तान में अल कायदा के साथ जुड़ना, उसके बाद वहां हुआ अमेरिकी सेना का हस्तक्षेप, पाकिस्तान में तालिबान नेतृत्व की मौजूदगी, हक्कानी और दूसरे समूह द्वारा नाटो सैनिकों को मारा जाना और पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर ड्रोन हमले, इनमें में किसी से भी भारत से कोई लेना देना नहीं।’’
/> सिंह ने कहा कि भारत ने अफगानिस्तान में अफगान नीत और अफगान स्वामित्व वाली सुलह का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में 9-11 के हमले के बाद शुरच्च्आती दो वर्षों में किए गए गंभीर प्रयास की वजह से वर्ष 2003-2004 में लोया जिरगा की बैठक हुई और एक नए संविधान के साथ अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक इस्लामिक गणराज्य का उद्भव हुआ। उन्होंने कहा, ‘‘हामिद करजई की सरकार उन्हीं कोशिश का नतीजा थी।’’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत ने इस पहल को पूर्ण समर्थन दिया और विकास सहायता के जरिए वहां की लोकतांत्रिक शासन की मदद में सक्रीयता से शामिल रहा। भारत ने अफगानिस्तान को अब तक दो अरब अमेरिकी डॉलर की विकास सहायता दी है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक शक्तियों के समर्थन को लेकर प्रतिबद्ध है।’’ अफगानिस्तान को लेकर प्रमुख विदेश नीति पर दिए भाषण में सिंह ने कहा, ‘‘वहां की समग्र राजनीतिक और सुरक्षा संतुलन को ध्यान में रखते हुए भारत अफगान सुरक्षा बलों की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए उन्हें गैर घातक सहायता और प्रशिक्षण देने का इच्छुक है।’’ सिंह ने कहा कि वह प्रजातांत्रिक, संप्रभु और प्रगतिशील अफगानिस्तान का समर्थन करते हैं, जो अपने मामलों को विदेशी हस्तक्षेप के बिना संभालने में सक्षम हो। चारों ओर से जमीन से घिरे अफगानिस्तान में स्वायत्ता और अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए बाहरी दुनिया के साथ उसका संपर्क बढ़ाना काफी मददगार साबित हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारे भाइयों के चेहरे पर खुशी, उनके घरों में रोशनी, जेबों में नोट और सबसे महत्वपूर्ण उनके पड़ोस में शांति दे सकेगी।’’ उन्होंने कहा कि भारत और अफगानिस्तान के बीच के पारस्परिक लाभप्रद संबंध अफगानिस्तान के अन्य पड़ोसियों के साथ उसके संबंधों के रास्ते में आढे नहीं आएगा। उन्होंने कहा, ‘‘हम चाहते है कि अफगानिस्तान का अपने सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ दोस्ताना संबंध रहे और वह इस मामले में पूरी आजादी से काम करे।’’ सिंह ने कहा कि भारत अफगानिस्तान को दी जा रही विकास सहायता को जारी रखने को लेकर प्रतिबद्ध है। भाषा
|