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Tuesday, 16 July 2013 09:11 |
जनसत्ता ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट न े सोमवार को शशिकांत शर्मा की भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) पद पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।
प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे हाईकोर्ट से संपर्क करें। जो इस मामले से निपटने में समान रूप से सक्षम है। याचिकाकर्ताओं में पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एन गोपालस्वामी और पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल (सेवानिवृत्त) आरएच ताहिलियानी शामिल हैं। याचिका में इस आधार पर शर्मा की नियुक्ति को खारिज किए जाने की मांग की गई थी कि यह नियुक्ति चयन की किसी व्यवस्था, चयन समिति, किसी मापदंड, किसी मूल्यांकन और किसी तरह की पारदर्शिता के बगैर मनमाने तरीके से की गई है। नौ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से केंद्र को यह निर्देश देने की भी अपील की थी कि केंद्र एक तय प्रक्रिया पर आधारित पारदर्शी चयन प्रक्रिया तैयार करे और एक व्यापक निष्पक्ष चयन समिति का गठन करे। यह समिति आवेदन और नामांकन मंगाने के बाद सर्वाधिक योग्य व्यक्ति की कैग के रूप में नियुक्ति के लिए सिफारिश करेगी। याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील फली एस नरीमन ने कहा कि अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए क्योंकि यह एक महत्त्वपूर्ण मामला है। याचिकाकर्ताओं
में पूर्व नौसेना प्रमुख (सेवानिवृत्त) एल रामदास, पूर्व उप कैग बीपी माथुर, कमलकांत जायसवाल, रामास्वामी आर अय्यर, ईएएस सरमा, विभिन्न सरकारी मंत्रालयों के सभी पूर्व सचिव, इंडियन आडिट और एकाउंट सर्विस के पूर्व अधिकारी एस कृष्णन और पूर्व आइएएस अधिकारी एमजी देवास्हयाम शामिल हैं। जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि डीजी (खरीद) या रक्षा सचिव के पद पर रहते हुए शर्मा ने कई बड़े रक्षा खरीद सौदों को मंजूरी प्रदान की थी। इनमें से कई मामले सरकार को शर्मसार करने वाले थे। इन रक्षा सौदों में एंग्लो इतालवी कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के साथ हुआ 12 वीवीआइपी हेलिकाप्टर खरीद का सौदा भी शामिल है। इतालवी जांचकर्ताओं का कहना है कि इसमें कम से कम 350 करोड़ रुपए की रिश्वत शामिल है। याचिका में यह भी कहा गया है कि बड़े घोटाले के रूप में सामने आए टाट्रा ट्रक सौदे को भी शर्मा ने मंजूरी दी थी। इसमें कहा गया है कि अब यदि कैग के रूप में शर्मा इन सौदों पर हुए व्यय की पड़ताल करते हैं, तो इससे हितों का टकराव होगा क्योंकि वह उन्हीं रक्षा खरीदों के लेखे जोखे की पड़ताल करेंगे जिनकी मंजूरी उन्होंने खुद दी थी।
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