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Tuesday, 16 July 2013 09:04 |
मुंबई। बंबई हाई कोर्ट ने कहा है कि नाबालिग बच्चे के संरक्षण अधिकारों पर फैसला करने के दौरान माता-पिता का धर्म वित्तीय क्षमता जैसे अन्य कारकों की अवहेलना नहीं कर सकता।
अदालत चार साल की लड़की के पिता लिस्बन मिरांडा और उसकी बुआ लुएला फर्नांडीज की ओर से दायर दो अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई कर रही थी। इसमें एकल न्यायाधीश के उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें बच्ची की देखभाल की जिम्मेदारी उसके नाना राजन चावला को सौंपी गई थी। लड़की का पिता ईसाई है। उसकी मां हिंदू थी। लड़की के पिता अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं। मां की मौत के बाद से बच्ची नाना-नानी के साथ रह रही है। हालांकि, बच्ची के पिता के निर्देश पर उसकी एक रिश्तेदार ने बच्ची की देखभाल की जिम्मेदारी मांगने के बच्ची के नाना के दावे को चुनौती दी। नाबालिग लड़की के पिता ने भी बच्ची की देखभाल की जिम्मेदारी मांगी थी। एकल न्यायाधीश के समक्ष दलील दी गई थी कि
नाबालिग लड़की के पिता ईसाई धर्म को मानते हैं जबकि उसके नाना-नानी हिंदू हैं। यह अनुरोध किया गया कि लड़की के नाना-नानी बच्ची को ईसाई धर्मोपदेश की शिक्षा नहीं दे सकेंगे। हालांकि, इस दलील को हाई कोर्ट के समक्ष दायर अपीलों में नहीं पेश किया गया था और न्यायमूर्ति धनंजय चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एससी गुप्ते ने कहा कि ऐसा कर ठीक ही किया गया। न्यायाधीशों ने कहा,‘अगर धर्म के पहलू को ध्यान में रखा जाता है तो भी यह स्पष्ट है कि बच्ची का जन्म ऐसे परिवार में हुआ जहां पिता ईसाई धर्म को मानता है और मां हिंदू थी।’ न्यायाधीशों ने अपीलों को खारिज करते हुए कहा,‘साफ तौर पर ऐसी स्थिति में माता-पिता में से एक के धर्म को उतना महत्त्व देना बेहद अनुचित होगा, जो बच्चे के कल्याण पर प्रभाव डालने वाले अन्य कारकों के संतुलन को समाप्त कर दे।’
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