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Monday, 15 July 2013 13:40 |
नयी दिल्ली। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भेजे गए आखिरी टेलीग्राम के साथ ही कल 163 साल पुरानी टेलीग्राम सेवा भारतीय इतिहास के पन्नों में समा गई।
कल रात 11:45 बजे भारत में टेलीग्राम सेवा बंद हो गई और इसके जरिए आखिरी टेलीग्राम जनपथ स्थित केंद्रीय तार घर :सीटीओ: से अश्विनी मिश्रा नामक व्यक्ति ने भेजा, जो राहुल गांधी और डीडी न्यूज के महानिदेशक एस एम खान को भेजा गया था। भारतीयों की कई पीढ़ियों को अच्छी और बुरी खबरें देने वाली टेलीग्राम सेवा की विदाई के दिन इससे 68,837 रच्च्पए का राजस्व प्राप्त हुआ। एक वरिष्ठ टेलीग्राफ अधिकारी ने बताया कि कल कुल 2,197 टेलीग्राम बुक किए गए, जिनमें से कंप्यूटर के माध्यम से 1,329 और फोन के जरिए 91 टेलीग्राम बुक कराए गए। एक अधिकारी ने कहा कि कई लोगों ने कल सीटीओ जाकर अपने टेलीग्राम बुक कराए हंै। पिछले कुछ वर्षों से लगभग भुला दी गर्ई टेलीग्राम सेवा के आखिरी दिन अपने प्रियजनों को संदेश भेजने के लिए कल राजधानी के चार टेलीग्राफ केंद्रों में बड़ी तादाद में लोग उमड़े, जिनमेें कई युवा भी थे, जो पहली बार इस सेवा का उपयोग कर रहे थे।
भारत में टेलीग्राम सेवा की शरच्च्आत वर्ष 1850 में कोलकाता और डायमंड हार्बर के बीच प्रायोगिक तौर पर की गई थी। अगले साल ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसका खूब उपयोग किया। वर्ष 1854 मेंं यह सेवा जनता के लिए उपलब्ध करा दी गई थी। उन दिनों यह संचार का यह इतना महत्वपूर्ण माध्यम था कि देश की आजादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी अंग्रेजों को संचार से वंचित करने के लिए टेलीग्राम लाइनें ही काट डालते थे। बुजुर्गोंं को आज भी याद है कि टेलीग्राम के मिलने पर अजीब सी अनुभूति होती थी। टेलीग्राम मिलने पर लोग अपनों की खैरियत को लेकर मन ही मन आशंकित हो उठते थे। जवानों या सशस्त्र बलों को छुट्टी मांगना हो, तबादले का इंतजार करना हो या जॉइनिंग रिपोर्ट की प्रतीक्षा हो, संचार के इस ‘हैंडी मोड’ टेलीग्राम से फौरन सूचना मिल जाती थी। एसएमएस, ईमेल और मोबाइल फोन जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकियों की वजह से लोग टेलीग्राम सेवा का उपयोग बेहद कम करने लगे और देश की यह प्रतिष्ठित सेवा धीरे-धीरे गुमनामी में खोती चली गई। भाषा
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