Friday, 31 May 2013 09:23 |
कोलकाता, जनसत्ता। राज्य में आगामी पंचायत चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने का काम बुधवार से शुरू हो गया।
पहले ही दिन सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस पर विरोधी पार्टी के उम्मीदवारों को नामांकन पत्र जमा नहीं करने देने का आरोप लगाया गया है। इस तरह की खबरें बर्दवान जिले के विभिन्न जगहों से मिल रही हैं। सूत्रों के मुताबिक इस जिले के रायना, खंडघोष व आउसग्राम जैसे इलाके में विरोधी पार्टी के उम्मीदवारों को नामांकन पत्र दाखिल करने से रोका जा रहा है। आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस के हथियारबंद कार्यकर्ता विरोधी माकपा व कांग्रेस के उम्मीदवारों डरा-धमका रहे हैं। नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए ब्लाक दफ्तर में विरोधियों को प्रवेश करने से रोकने की खबर भी मिली है। यही नहीं, विरोधी पार्टी के उम्मीदवारों के साथ मारपीट करने का भी आरोप सत्ताधारी तृणमूल पर लगाया जा रहा है। हावड़ा के उदयनारायणपुर में भी इसी तरह की घटना आज घटी। विरोधी पार्टियां पिछले कुछ समय से लगातार यह शिकायत कर रही हैं कि तृणमूल कांग्रेस के समर्थक लोगों के घर-घर जाकर नामांकन पत्र जमा नहीं देने का फरमान दे रहे हैं। वाममोर्चा व कांग्रेस की तरफ से राज्य चुनाव आयोग से शिकायत दर्ज कराई गई है। एक दिन पहले वाममोर्चा अध्यक्ष व माकपा के राज्य सचिव विमान बसु ने राज्य चुनाव
आयोग से इस मामले में दखल देने व पंचायत चुनाव को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने का अनुरोध किया था। माकपा के वरिष्ठ नेता रबीन देव ने बुधवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया कि दक्षिण चौबीस परगना जिले के भांगड़ में तृणमूल कांग्रेस के पूर्व विधायक अराबुल इस्लाम व उनके सहयोगियों ने नामांकन पत्र दाखिल करने के समय माकपा के कार्यकर्ताओं समर्थकों पर हमला किया। उन्होंने कहा कि कलकत्ता हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से पंचायत चुनाव में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने का निर्देश दिया है, बावजूद इसके सरकार की तरफ से पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य की वर्तमान परिस्थिति को लेकर राज्य चुनाव आयोग भी चिंतित है। रबीन देव ने कहा कि सत्ताधारी तृणमूल को जहां लग रहा है कि पंचायत चुनाव में उसकी जीत निश्चित है, खासकर उन्हीं जगहों पर विरोधी पार्टी के उम्मीदवारों को नामांकन पत्र दाखिल करने में बाधा पैदा की जा रही है। माकपा के नेता ने आरोप लगाया कि पुलिस व प्रशासन के बीच गठजोड़ हो गया है। इसीलिए विरोधी पार्टियों पर हमले के समय पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है।
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